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अकलङ्कग्रन्थत्रय
[ ग्रन्थ प्रत्यभिज्ञान-दर्शन और स्मरण से उत्पन्न होनेवाले, एकत्व सादृश्य वैसदृश्य प्रतियोगि तथा दूरत्वादिरूपसे संकलन करनेवाले ज्ञान का नाम प्रत्यभिज्ञान है । प्रत्यभिज्ञान यद्यपि स्मरण और प्रत्यक्ष से उत्पन्न होता है फिर भी इन दोनों के द्वारा अगृहीत पूर्वोत्तरपर्यायवर्ती एकत्व को विषय करने के कारण प्रमाण है। अविसंवादित्व भी प्रत्यभिज्ञान में पाया जाता है जो प्रमाणता का खास प्रयोजक है ।
तर्क-प्रत्यक्ष-साध्यसाधनसद्भावज्ञान और अनुपलम्भ-साध्याभाव-साधनाभावज्ञान से उत्पन्न होनेवाला सर्वोपसंहाररूपसे साध्यसाधन के सम्बन्ध को ग्रहण करनेवाला ज्ञान तर्क है । संक्षेप में अविनाभावरूप व्याप्ति को ग्रहण करनेवाला ज्ञान तर्क कहलाता है। जितना भी धूम है वह कालत्रय तथा त्रिलोक में अग्नि से ही उत्पन्न होता है, अग्नि के अभाव में कहींभी कभीभी नहीं हो सकता ऐसा सर्वोपसंहारी अविनाभाव प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाण से गृहीत नहीं होता। अतः अगृहीतग्राही तथा अविसंवादक तर्क को प्रमाणभूत मानना ही चाहिये । सन्निहितपदार्थ को विषय करनेवाला अविचारक प्रत्यक्ष इतने विस्तृत क्षेत्रवाले अविनाभाव को नहीं जान सकता। भले ही वह एक अमुकस्थान में साध्यसाधन के सम्बन्ध को जान सके, पर अविचारक होने से उसकी साध्यसाधनसम्बन्धविषयक विचार में सामर्थ्य ही नहीं है। अनुमान तो व्याप्तिग्रहण के बाद ही उत्पन्न होता है, अतः प्रकृत अनुमान स्वयं अपनी व्याप्ति के ग्रहण करने का प्रयत्न अन्योन्याश्रयदोष आने के कारण नहीं कर सकता; क्योंकि जब तक व्याप्ति गृहीत न हो जाय तब तक अनुमानोत्पत्ति नहीं हो सकती और जब तक अनुमान उत्पन्न न हो जाय तब तक व्याप्ति का ग्रहण असंभव है । प्रकृत अनुमान की व्याप्ति किसी दूसरे अनुमान के द्वारा ग्रहण करने पर तो अनवस्था दूषण स्पष्ट ही है । इस तरह तर्क को स्वतन्त्र प्रमाण मानना ही उचित है।
जिनमें अविनाभाव नहीं है उनमें अविनाभाव की सिद्धि करनेवाला ज्ञान कुतर्क है। जैसे विवक्षा से वचन का अविनाभाव बतलाना; क्योंकि विवक्षा के अभाव में भी सुषुप्तादि अवस्था में वचनप्रयोग देखा जाता है। शास्त्रविवक्षा रहने पर भी मन्दबुद्धियों के शास्त्रव्याख्यानरूप वचन नहीं देखे जाते ।
अनुमान-अविनाभावी साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं । नैयायिक अनुमिति के करण को अनुमान कहते हैं । उनके मत से परामर्शज्ञान अनुमानरूप होता है । 'धूम अग्नि से व्याप्त है तथा वह धूम पर्वत में है' इस एकज्ञान को परामर्शज्ञान कहते हैं। बौद्ध त्रिरूपलिंग से अनुमेय के ज्ञान को अनुमान मानते हैं ।
साधन का स्वरूप तथा अविनाभावग्रहणप्रकार-साध्य के साथ जिसकी अन्यथानुपपत्ति-अविनाभाव निश्चित हो उसे साधन कहते हैं । अविनाभाव (विना-साध्य के अभाव में अ-नहीं भाव-होना ) साध्य के अभाव में साधन के न होने को कहते हैं ।
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