Book Title: Ahimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me Author(s): Gaveshnashreeji Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ भूमिका डॉ. साध्वी गवेषणाश्री ने जैन परम्परा को केन्द्र में रखकर क्रिया का दार्शनिक और वैज्ञानिक अनुशीलन किया जिस पर उन्हें जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग के अन्तर्गत पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई। प्रस्तुत ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसमें जैन दर्शन के एक मुख्य विषय पर शास्त्रीय दृष्टि से ऐसा प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया जो भारतीय दर्शन के सामान्य अध्येताओं के लिये तो नितान्त नवीन है ही जैन दर्शन के अध्येता भी इस ग्रन्थ के प्रत्येक पृष्ठ पर कुछ न कुछ नया अवश्य पायेंगे। बहुत से शोध ग्रन्थों में जो आजकल प्रचारात्मक प्रवृत्ति दिखायी देती है, उसका इस ग्रन्थ में अभाव है। शोधार्थियों के लिये यह बात अनुकरणीय है। शोधार्थी का कार्य तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में युक्ति संगत ढंग से प्रस्तुत कर देना है, प्रशस्तिपरक गुणगान करना उसका कार्य नहीं है। उसे किसी सिद्धान्त की गुणवत्ता का मूल्यांकन पाठक पर छोड़ देना चाहिये न कि अपनी मान्यता पाठक पर थोपनी चाहिये। डॉ. साध्वी गवेषणाश्रीजी इस नियम का पालन किया है। इसके लिये वे साधुवाद की पात्र हैं। आज विज्ञान पदार्थ की अपेक्षा क्रिया पर अधिक बल दे रहा है। वह कह रहा है कि विश्व में नृत्य तो है किन्तु नर्तक कोई नहीं है। क्रिया-प्रतिक्रिया तो है किन्तु कोई ऐसा ठोस घटक नहीं है जिनसे विश्व बना हो। ऐसा में क्रिया काPage Navigation
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