Book Title: Ahimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me Author(s): Gaveshnashreeji Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ दो शब्द विश्व वाङ्गमय की अनमोल धरोहर है - आगम । जैन दर्शन के आधारभूत मौलिक ग्रंथ | ज्ञान-विज्ञान के अक्षयकोष, सभ्यता-संस्कृति के जीवंत दस्तावेज हैं । तत्त्वज्ञान का महासागर। ज्ञान अनंत है, शब्दों की अपनी सीमा है। अनन्त सत्य को अनुभूतियों के आईने एवं अनुभूतियों को शब्दों के आईने पर उतारा नहीं जा सकता। जो कुछ भी पढ़ा लिखा जा सकता है सागर की एक बूंद है। भारत भूमि दर्शनों की जन्मदात्री है। दार्शनिक चिन्तन ही भारतीय संस्कृति की प्राण प्रतिष्ठा है। गौरव है। आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म, बंध, मोक्ष भारतीय दार्शनिकों के चिन्तन बिन्दु रहे हैं। आत्मा का क्या है? दृश्य जगत् क्या है। वैचित्र्य का आधार क्या है ? आदि प्रश्न जीवन के उषा - काल के मानव मस्तिष्क को झकझोरते रहे हैं। - जगत् रूप कार्य प्रत्यक्ष है, किन्तु आत्मा प्रत्यक्ष नहीं है। कारण की मीमांसा के संदर्भ में लोक, आत्मा, क्रिया और कर्म को मुख्यता दी गई। आत्मा का अस्तित्व त्रैकालिक है । यह तथ्य लोकायत के अतिरिक्त सर्व मान्य है। कर्म का सामान्य अर्थक्रिया है । मन, वचन और शरीर के द्वारा की जाने वाली संपूर्ण क्रिया को कर्म संज्ञा से अभिहित किया जा सकता है क्रिया कर्म की जननी है। आत्मवाद, कर्मवाद और लोकवाद (सृष्टि) पर भरपूर साहित्य उपलब्ध mPage Navigation
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