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गलं का मिणिया (कीरका टीका) नामिका नख और मुख यह ६ जिसके ऊंचे हो वो सर्व प्रकार मे उन्नति करने वाला होवे और दान चमट्टी वाल अंगुली के पैरखे और नाब यह पांच जिसके मुख्य अर्थात् पतले हो वो धनाढ्य होवे. आंख स्तन का वीचका भाग नाक हनु (ठोडी) और भुजा जिस की दीर्य अर्थात् लम्बी हो। वो पुरुष दीयं आयु, धनाड्य और महा बलवान होवे, कपाल छानी और मुख जिलका विशाल (बडा ) होय वो पुरुष राजा होव, गर्दन जांघ और पुरुष चिन्ह (पुलिय) जिसके लघु हो वो पुरुष राजा हांव, स्वर (अावाज ) नाभी और सच यह नीन जिसके गंभीर हो वो समुंद्र और पृथ्वी का मालिक हो.
श्रेष्ठ पुरुषों के ऊपर कहे हुए ३२ लक्षण होते हैं, किन्तु श्रेष्ठ पुरुषों में प्रधान वलदेव और बासुंदव के १०८ और चक्रवर्ती तीर्थकर भगवान् के १००८ लक्षण शरीर पर होने हैं परन्तु शरीर के भीतरी भाग में ज्ञानी गम्य (जिनको जानी महाराज जान सक्ने हैं) अनेक लक्षण होते हैं ऐसा निशीय चूगी ग्रंथ में कहा है.
शरीर की सुन्दरता __ सम्पूर्ण मनुष्य दंह में मुख प्रधान है, मुख में नाक श्रेष्ठ है और नासिका से नेत्र अधिक श्रेष्ठ है, नेत्रों द्वारा मनुष्य का शील ( सदाचार )मालुम होता है, नासिका द्वारा सरलता और रूप ( खुवमूरती ) द्वारा धन संपत्ती प्रगट होती है शील से गुण, गनि से वर्ण. वर्ग में नह. स्नेह से स्वर, स्वर में तेज और तेज से सत्र मालुम होना है.
सत्व गुण की प्रशंसा इस संसार में मनुष्य नव प्रकार के होते हैं अथान सालिक, मुकृति, दानी, राजसी, विपर्या, ब्राह्मी, तामसी, पानकी, लोभी. सात्विक पुरुष स्त्रपर को इस लोक और परलोक में मुग्व देने वाला होना है, कारण वो दयावान, धीरजवान, सन्यवादी, देवगुरू का भक्त, काव्य, और धर्म में प्रसन्न चित्त और शूरता में नायक होता है.
सन्त्र गुण या तो बहुत छोटे में, वा बहुन बड़े में, बहुत पुष्ट मेंवा बहुत दुर्बल में, बहुत काल में वा बहुन गार में होता है. .
चारगनियों में आने जाने के लक्षण धर्म गगी, मौभाग्यी, निरोगी मुस्त्रमा