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ग्रन्मतिथए चिंतित् पत्थिए मलोग ए से कप्पे समुपज्जियां ||१५||
नमस्कार हो अरिहंत भगवंत को जो तीर्थ स्थापित करने वाले, स्वयम् चो पाने वाले, पुरुषों में उत्तम, पुरुषों में सिंह समान, पुरुषों में वर पुंडरिक ( श्रेष्ठ कमल समान ), और वर गंध हस्ति समान है अर्थात् विपत्ति में धैर्य रखने वाले, श्रेष्ठ वचन बोलने वाले, और कुतर्क वाढी को हटाने वाले हैं, लोगों में उत्तम, लोगों के नाथ, लोगों के हित करने वाले लोगों में प्रदीप ( दीपक ) समान, लोगों में प्रद्योत करने वाले, अभय देने वाले, हृदय चतु देने वाले, सीवा मार्ग बताने वाले, शरण देने वाले, जीव के स्वरूप बताने वाले, धर्म की श्रद्धा कराने वाले, धर्म्म प्राप्ती कराने वाले, धम्मोपदेशक, धर्म नायक, धर्म सारथी आप हैं. इससे आपको नमस्कार हैं.
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* मेघ कुमार की कथा
(मंत्र कुमार की नीचे दी हुई कथा से मालुन होगा कि भगवान् महावीर ने मेघ कुमार को उपदेश देकर किस प्रकार धर्म में दृढ़ किया इसलिये भगवान् धर्मोपदेशक, धर्म के सारथी हैं ),
भगवान् महावीर प्रभू जिस समय ( दीक्षा ग्रहण करने तथा केवल्य प्राप्त करने के पश्चात ) ग्रामानुग्राम विहार करते हुवे राजगृही नगरी के बाहिर के उद्यान में पधारे तो देवताओं ने थाकर समवसरण की रचना की अर्थात् व्याख्यान मंडप बनाया. उद्यान के रक्षक ने नगरी में जाके राजा श्रेणिक को भगवान् के पधारने के शुभ समाचार सुनाये. राजा श्रेणिक राणी, पुत्र, और सर्व नगरवासी लोग भगवान का व्याख्यान सुनने के हेतु समवसरण में याकर यथायोग्य स्थान पर बैठे उपदेश सुनने से राजकुमार मेघ कुमार को चैराग्य उत्पन्न हुवा और उसने अपने माता पिता से दीक्षा ग्रहण करने के लिये आज्ञा मांगी. पुत्र के यह हृदयभेदक वचन सुन कर राजा श्रेणिक और धारणी राणी ने पुत्र को अनेक प्रकार से समझाया कि अभी दीक्षा लेने का समय नहीं हैं किन्तु राज्य करने का समय है परन्तु मेघ कुमार को तो पूर्णऔर दृढ वैराग्य होगया था इसलिये उसने एक भी न मानी और आज्ञा के लिये अत्यन्त आग्रह किया. माता पिता भी उसकी वैराग्य दशा को देख कर आज़ा
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