Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 207
________________ ( १८६ ) महागिरी एलाव बसत १, थेरे ग्रज्जसुहत्थी वासिद्धसगुत्ते २. थेस्स्स अज्जमहागिरिस्स एलावच्चसगुत्तस्स इमे अट्ट थेरा तेवासी यहावचा श्रभिरणाया हुत्था, तंजहा थेरे उत्तरे १, थेरे वलिस्सs २, थेरे धगड्डे ३, थेरे सिरिड्ढे ४, धेरे कोडिने ५, थेरे नागे ६, थेरे नागमिते ७, थेरे छलूए रोहगुत्ते कोसियगुणं, थेरेहिंतो णं बलूए हिंतो रोहगुतेहिंतो कोसियगुत्तहिंतो तत्थ णं तेरासिया निग्गया । थेरेहिंतो पं उत्तरवलिसहिंतो तत्थ णं उत्तरवलिस्संह नाम गणे निम्गए-त. स णं इमात्र चारि साहायो एवमाहिज्जंति, तंजहा-कोसंविया १, सोइतिया २, कोडवाणी ३, चंदनागरी ४, रस्स अज्जहत्थिस्स वासिमगुत्तस्स इमे दुवाल थेरा येतेवासी ग्रहावचा श्रभिरणाया हुत्था, तंजहान्धेरे ग्रज्ज - रोहण १, जसभद्दे २ मेहगणी ३ य कामिड्ढी ४ । सुट्ठिय ५ सुडबुद्धे ६, रक्खिय ७ तह रोहगुत्ते = ॥ १ ॥ इसिगुत्ते & सिरिगुत्ते १०, गणी वंभ ११ गणी य तह सोमे १२ | दस दो गणहरा खलु, एए मीसा मुहत्विस्य ॥२॥ आये स्थूलभद्र के आये महागिरि और आर्यमुहस्ती मुख्य शिष्य थे. श्री आर्य महागिरि के मुख्य शिष्य थे. उत्तर, वलिम्पृह, धनाढ्य, भद्र, कौडिन्य नाग, नागमित्र, पलक नेहगुप्त पडुलकरगुम से जीव अजीव नाजीव नामकी तीन राशि वाला पंथ की उत्पति हुई जो वर्तमान में वैशेषिक मन कहा जाता है. अन्य दर्शनी के साथ एक वक्त चनी में गया वहां पर याद में और चमत्कारी विद्या में गुप्त गुरु के मताप में जीना तव राज्य सभा में अन्य द नी ने जैन का पत्र स्वीकृत कर जीव और अजीव ऐसी दो गति स्थापन की वह बात झूठी कर अपनी जमाने की, नजीर (जैसे

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