Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 238
________________ (२२०) विगई श्राहारित्तए, नो से कप्पड़ से अणापुच्छित्ता पायरियं वा जाव गणावच्छेययं वा जं वा पुरयो कडु विहरड़, कप्पड़ से प्रापुच्छित्ता पायरियं जात्र श्राहारित्तए-'इच्छामि एं भंते ! तुम्भेहिं अभयुशणाए समाणे ग्रन्नरिं विगई पाहारित्तएतं एवड्यं वा एवइग्बुत्तो वा, ते य से वियरिजा, एवं से कप्पइ अण्णयरि विगई प्राहारितए, ते य से नो वियरिज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णयार विगई अाहारित्तए, से किमाहु भंते ! ? अायरिया पचवायं जाणंति ॥ १८ ॥ __साधु को कोई भी जानि की भन्य विकृति दुध दही वगरह वापग्नी हो तो बड़ों को पूछना जो यात्रा देव नो लाने को जाना और लाके वापरे परन्तु आज्ञा न देव तो नहीं लाना क्योंकि विकृति से क्या लाभ हानि होगी वह पहिले से गुरु महाराज जानत है. वासावाम पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा ग्रगणयरिं तेइच्छिय (तगिच्छं) ग्राउट्टित्तर, तंचव सब्बं भाणियब४ि६॥ कोई साधु साध्वी दवा कगने की इच्छा को तो भी बड़ों को पूछकर करे. वासावासं पज्जोसविए भिक्ख इच्छिज्जाअरण्यरंगोरालं कल्लाणं मिवं घराणं मंगल्लं सस्सिरीयं महाणुभावं तबोकम्म उपसंपज्जिना एं विहारित्तए, तं चेव सव्वं भाणियलं ॥५॥ माधु का उदार कल्याण शिव धन्य मंगल सश्रीक महानुभाव तप को करना हो तोभी पूछकर करे. वामावासं पज्जासविए भिक्खू इच्छिज्जा अपच्छिममारणतियसंलहणाजूमणाजुमिए भत्तयाणपडियाइक्खिए पायो वगए कालं अणवखमाणे विहरित्तए वा निक्वमित्तार वा.

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