Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 241
________________ (२२३ ) हेमंतगिम्हासु जहा णं वासासु, से किमाहु मंते ! ? वासासु णं उस्सरणं पाणा य तथा य बीया य पणगा य हरियाणि य भवंति ॥ ५५ ॥ चौमासा मे साधू को साध्वी को स्थंडिल मात्रा को भूमि को तीन वक्त अच्छी तरह देखनी चाहिये आठ मास सिवाय चार में वनस्पति और सूक्ष्म जन्तु ज्यादा होते हैं उनकी यतना के लिये चौमासा का आचार अलग बताया है. वासावासं पज़्जोसवियाणं कप्पर निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तत्र मत्तगाई गिरिहत्तए, तंजहा - उच्चारमत्तए पासवमत्तए, खेलमत्त ॥ ५६ ॥ चोमासा में साधु साध्वी को मल परठवने के लिये तीन मात्रक (मट्टी के पात्र वा काष्ट पात्र ) रखने, कि स्थंडिल, मात्रा और श्लेष्म वगैरह के लिये काम लगे. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथी वा परं पज्जोसवणाओ गोलोमम्ममाण मित्तेवि केसे तं रयणि उवायणावित्तए । अज्जेणं खरमुंडेण वा लुकसिरए वा होइयव्वं सिया । पक्खिया रोवणा, मासिए खुरमुंडे, मासिए कत्तरिमुडे, छम्मासिर लोए, संवच्चरिए वा थेरकप्पे ॥ ५७ ॥ वर्षाऋतु में पर्युपणा (संवच्छरी ) से आगे सिर पर के लोग जितने भी बाल नहीं रहना चाहिये अथवा रोगादि कारण बालकतरावे वा मुंडन कराना किन्तु प्रति पन्दरह दिन में कतराना, प्रतिमास मुंडन कराना युवान को छे छे मास में लोच कराना, और वृद्ध की आंख की कसर हो वा बाल थोड़े हो तो एक वर्ष में कराना. वासावासं पज्जोसविप्राणं नो कप्पड़ निग्गंथाण वा नि


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