Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 224
________________ (२०६) के समय मांम का स्वाद आने लगा वह वात प्राचार्य हेमचन्द्र को सुनाई गुरु महाराज ने कहा कि घबर भी नहीं खाना कि ऐसी दुष्ट भावना भी न हो. कुमारपाल ने वह छोड़ दिया परन्तु उस दुष्ट वासना का दंड मंगा गुरु महाराजने कहा कि ३२ दांत गिरा देना चाहिये. उसने मंजूर किया लुहार को बुलाया कुमारपाल की धैर्यता देख दांत रखवाकर ३२ जिन मंदिर बनाने का फरमाया. इसलिये भव्यात्मा साधु वा श्रावक मांस मदिरा से निरन्तर दूर रहवं. वासावासं पज्जोसवियाणं अत्यंगाणं एवं वृत्तपुवं भवइ, अट्ठो भंते ! गिलाणस्स, से य पुच्छियब्बे-केवहएणं अहो ? सेवएज्जा, एव इएणं अट्ठो गिलाणस्स, जं से पमाणं वयइ से य पमाणोधिततब्बे, से यविनविज्जा, सेय विनवे माणे लभिज्जा, से य पमाणपत्ते होउ अलाहि-इय वत्तव्यं सिया? से किमाहु भंते ! ?, एवइएणं अट्ठोगिलाणस्स, सिया एं एवं वयंत परो वइज्जा-पडिगाहेह अज्जो ! पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसिवा, एवं से कप्पड़ पडिगाहित्तए, नो से कप्पड़ गिलाणनीसाए पडिगाहित्तए ॥ १८ ॥ __ कोई बीमार साधु के लिय गुरुने दूसरे साधु को कहा हो कि बीमार को विकृति य वगैरह लादेना तो बीमार को पूछकर जितना वह कहे वह गुरु को कहकर ग्रहस्थ के घर से लाब किन्तु बीमार को जितना चाहिये इतना मिलने पर ज्यादा न लेवे परन्तु ग्रहस्थ कहवे कि आपको अधिक चाहिये तो लो वचे वह आप खाना वा दूसरों को देना ऐसा कहने पर साधु लेकर आये और बीपार को देकर बचे बह आप खासके किन्तु बीमार की निश्रा से विना कारण आप विकृनि खान की इच्छा न करे वचं वह वांटकर खावे. वासावास पज्जो० अत्यि णं थेराणे तहप्पगाराई कुलाई कडाइं पत्तिाई थिज्जाई वेसासियाई संमयाई बहुमयाई अणुमयाई भवंनि, जत्थ से नो कपइ अदक्खु वइत्तए .

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