Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 217
________________ (१६६) उत्तम व्रतवाले शील लब्धियुक्त आर्य धर्म मुनि को वंदन करता हूं जिनक दीक्षा समय में देवता उत्तम छत्र धरके चला था. १ [पूर्व भवका कोई मित्र देवता हुआ था उसने भक्ति पूर्वक छत्र धगया ] काश्यप गोत्री हस्तमुनि और मोक्ष माधन धर्ममुनि को में चंदन करता हूं. और सिंहमुनि और ( दुसरे ) धर्म मुनिका वंदन करता है. उनके बाद में आर्य जंबू जोतीन रत्नों में उत्तम थे उनको वंदन करना हूं. ९ कोमल, सरल, तीन रत्न युक्त काश्यप गोत्री नंदिनी पिना युनिको नमस्कार करता हूं. ___ उनके बाद स्थिर चारित्र वाले सम्यक्त्वधारक माहर गोत्री देवद्धि क्षमा श्रमण को वंदन करता हूं. अनुयोग धारण करने वाले धैर्यवन्त बुद्धि के समुद्र महासत्व वाले बलम गोत्री स्थिर गुप्त मुनि को वंदन करता हूं. ज्ञान दर्शन चारित्र तप संयुक्त गुणोंस भरे हुए कुमार धर्म को वंदन करना है. उसके बाद देवा क्षमा श्रमण जो मृत्रार्थ रन्न से भर , माथ गुणों में युक्त काश्यप गोत्री है उनकी चंदन करता हूं (जिनों के समय में मृत्र लिग्ये है उनका कोई शिष्य ने गुरुमुखं में स्थविरावली सुनकर लिग्बी है भद्रयाहु विरचितकल्प सूत्र आदीवर चरित्र नकई ऐमा ज्ञान होता है. पाठवां व्याख्यान समाप्त. ॥ तेणं कालेणं तेणं समाएं समषं भगवं महावीरे बा. साणं सीसहराए मासे विइझते वासावास पन्जानवड़ ॥१॥ से केपट्टणं भंते ! एवं बुजड़ 'समणे भगवं महावीरे वा. साणं सबीसहराए मासं विडत वामावानं पज्जालबेह? जी णं पाएणं अगारीणं अगाराई कडियाई उपियाई गन्नाई लित्ताई गुत्ताई घट्ठाई मट्ठाई संपधृमियाउं म्यामोदगाई न्यायनिगमगाइं अपणो श्रद्वारा कडाई परिभुत्ताई परिणामियाई भवंति. से तेणवणं एवं यन्त्रह 'ममणे भगवं महावीर वाना. एं सवीमहराण मा विवंत वामावरान पन्नोनयइ ।।२॥

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