Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ ( २०३ ) बैठना किंतु अब तो आचायों ने चांमासा असा मुदी १४ बैठाया वो कार्त्तिक सुदी १४ तक पूरा होना है और बीच मे कोई भी आत्मार्थी साधु फिरता नहीं हैं इसलिये ५०-८० दिन का झगड़ा करना व्यर्थ है और संवकरी प्रतिक्रमण वगैरह खूब भाव से अंतरंग शुद्धि से करना द्वेष घटाना जो पूर्णिमा को चोमासा बेटावे व पंचमी की संवछरी करे उनको कटु वचन नहीं कहना चाहिये कोई उदय तिथि कोई संध्या की तिथि लंबे नो भी कोमल भाव रखकर मध्यस्थता से प्रतिक्रमण शुद्ध भाव से करेंगे उनकी ज्ञान पूर्वक क्रिया सफल है. वीतराग प्रभु के सूत्रों में जिन्हों का सच्चा भाव है उन सबको मिलकर क्लेश राग द्वेष की परिणति घटानी चाहिये उसमें भी महामंगलीक पर्व में अमारिपट बजाना तो फिर अनेक गुणों से विभूपिन जैन श्रावक साधु को तो कैसे कटु वचन कहुंबे ! यह बात हमारे बहुत से भाई भूलकर लड़ते हैं उनसे हमारी नम्र प्राना है कि आत्म तत्व में ही रमगता कर बाह्य क्रिया करो कि परपीडक कटु वचन आपके शांत बदन में से न निकले. वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पड़ निम्गंथाण वा निग्गंश्रीण वा सव्वच समंता सकोस जोयां उग्गहं योगिरिहत्ता णं चिट्ठि ग्रहालंदमवि उग्गहे ॥ ६ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वग्रो समता सक्कोसं जोयण भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्त ॥ १० ॥ चोमासा में रहे हुए साधु साध्वीओं को पांच कोस तक चारों दिशा में जाना कल्पे. उपाश्रय से २|| २ || कांस प्रत्येक दिशा में जावे चोमासा चार मास का होवे परन्तु अधिक मास आजावे तो पांच मास भी रहते है अथवा विना अधिक वर्षा ऋतु पहिले वा पीछे बढे यानि जो पानी ज्यादा गिरं कीचड़ जादा होतो छ मास भी रह्सक्ते हैं. अधिक विचार के लिये बड़ी टीकाएं देखनी. गांचरी जाने के लिये भी चोमामा में २|| कांस तक जाना और पीछा आना चाहिये ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245