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राम्रो उसभदत्तस्सं माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिश्राए देवादाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीश्रो खत्तिय कुंडगामे नयरे नायाणं खतित्राणं सिद्धत्थस्म खतिग्रस्त कासवगुचस्स भारिश्राए तिसलाए खत्तिश्राणीए वासिस गुप्ता ए पुव्वरत्तावरतकालसमयंसि इत्युत्तराहि नक्खतेणं जोगमुवागएणं अव्वाबाहं श्रव्वाबाहेणं कुच्छिसि गम्मत्ताए साहरिए ।। ३१ ।।
वर्षाऋतुका तीसरा महिना पांचमा पक्ष अर्थात् आसोज वदि १३ के दिवस भगवान महावीर को एक गर्भ से निकाल कर दूसरे गर्भ में रखा था भगवान वयासी रात और दिन देवानंदा की कुंख में रहे और तयासीवी रात्री को भगबान पर अन्तःकरण की भक्ति होने से इन्द्र महाराज की आज्ञानुसार हरिण गमेषी देव ने देवानंदा की कुंख से निकाल कर भगवान को सिद्धार्थ राजा की रानी त्रिशला देवी की कुंख में रक्खा ।
जं रयाणि चणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहपीए जालंधर मगुत्ताए कुच्छीत्र तिसलाए खत्तीचाणीए चासिद्धसगुत्ता कुच्छिसि गन्भताए साहरिए, तं स्यणिं चणं सा देवादा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा प्रोहीरमाणी २ इंगयारूवे उराले कल्लाएं सिवे धन्ने मंगले सस्सिरीए चउद्दस महासुमिये तिसलार खत्तियाणीए हडेलि पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा - गय० गाहा ॥ ३२ ॥
उस समय देवानन्द्रा ने उत्तम गर्भ के चले जानेसे आधी निद्रा लेती स्वम में ऐसा देखा कि उसके पूर्व में देखे हुवे १४ स्त्रम रानी त्रिशला देवी उससे लेरही है और ऐसा देखकर वो एकदम जागृत हुई.
जं रयाणं चणं समणे भगवं महावीरे देवाणं