Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 201
________________ (१८३) जे हमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरति, एए णं मले अज्जसुहम्मस्स प्रणगारस्स आवञ्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा युच्छिन्ना ॥४॥ महावीर प्रभु के ११ गणधर १२ अंग के ज्ञाता, १४ पूर्व के जानने वाले समस्त सिद्धांत धारक, थे और राजग्रहनगर में एक मास के चौविटार उपवास से माक्ष में गये हैं नवगणधर वीर प्रभु के समय में मोक्ष गये दोनों रहे थे इन्द्र भूति गौतम, और सुधर्मा स्वामी वे पीछे मोक्ष में गये. सबने अपना परिवार सुधर्मा स्वामी को दिया जिससे आज जितने साधु विचग्ने हैं वे सब मुधर्मा स्वामी का ही परिवार माना जाना है. समणे भगवं महावीरे कासवगुत्ते णं । समणस्म णं भगवो महावीरस्स कासवगुत्तस्स अज्जसुहस्मे थेरे अंतेवासी अगिवेसायणगुत्त १, थेरस्स एं प्रज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसा. यणगुत्तस्स अज्जजंघुनामे थेरे अंतेवासी कासवगुत्तेणं २, थेरस्मण अज्जवुणामस्स कासवगुत्तस्स अज्जप्पभव थर अंतवासी कच्चायणमगुत्ते ३, थेरस्स एं अज्जपभवस्त कच्चायणसगुत्तस्स अज्जसिज्जभवे थेरे अंतवासी मणगप्पिया वच्छसगुत्त ४, थेरस्स णं अज्जसिज्जभवस्म मणगपिउणो वच्छसगुत्तस्ल अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासीतुंगियायणसगुत्ता। मुधर्मा सामि का शिष्य आर्य नं स्वामि काश्यप गोत्र के थे. जं स्वामी ने सुधर्मा स्वामी की देशना मुनकर गग्य आने में वामन वन धारण कर घरको आकर मातपिता की आज्ञा चाही परन्तु उन्होंने भाग्रह कर ८ कन्याओं के माय म्यादी की गति को प्राट कन्याओं ने मंसार निलास से मुख करना चाहा, परन्तु जंब स्वामी ने गंमार की अमारना यनाफर बराग्य वाली बनादी रान को ५०० चौर नांग करने को आये थे ये बीमगार की बात सुनकर ममझ गये कि जिम धनकी भारांक्षा मे हम यहां पर भाकर चोरी करने का इगहा ग्यत । उम धन में उनना दाब रिवर संदकर

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