Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 167
________________ ( १४९) करने को क्षेत्र के आने जाने से गौघाट बहुत हुआ जन्माभिषेक महोत्सव पूर्व की तरह जानना और पार्श्वनाथ नाम रखा. उनका विशेष चरित्र | जब भगवान् युवाअवस्था में आये तब कुशस्थल के राजा प्रसेन जितकी म्लेच्छ लोगों ने घेर लिया था. और उसको अश्वसेन राजा मदद करने को जाते देखकर पार्श्वनाथ स्वयं तैयार हुए इंद्रने सारथी सहित रथ भेजा रथमें बैठकर पार्श्वनाथ आकाश में जोरसे चलाकर वहां पहुंचे म्लेच्छ भाग गये जिस से प्रसेनजित राजा की पुत्री प्रसन्न होकर पिताकी आज्ञा लेकर पार्श्वनाथ के साथ लग्न किया, घरको आकर पूर्व पुण्य के अनुसार सुख भोगने लगे. एक दिन पूर्व भवका संबंधी कमर जो ब्राह्मग हुआ था और निर्धनता कुरुप और दुर्भाग्य से तापस हुआ था, वो गंगानदी के किनारे पर पंचाग्नि तप कर रहाथा और बहुत से लोग उनके दर्शनार्थ जाते थे, झरुखा में बैठे हुए भगवान ने पूछा कि आज क्या है. और ये लोग कहां जाते है सेवक ने खुलासा किया पार्श्वनाथ भी देखने को गये अज्ञान कष्ट करने वाले तापस को प्रभुने कहा हैभद्र ! स्त्रपर को व्यर्थ कष्ट देनेवाला यह ज्ञान तप क्यों प्रारंभ किया है ! अधिक पूछने पर जीव दया प्रधान प्रभुंन अग्नि कुंडमें से जलता काष्ट मगा कर चिराया और उसका मरण समीप देख कर सेवक पास नवकार मंत्र सुनाया सर्पने कोमल भाव से सुना और शुभ ध्यान सेमर धरणेंद्र देव हुआ, लोग श्रावर्य देखकर मधुकी दया और ज्ञानकी प्रशंसा कर घरको गये कम तापस की निंदा होने से उसने अधिक तप कर मरके मेघमालि देव हुआ. पासे रहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपने पडिरूवे थल्ली भद्दए विपीए, तीसं वासाई यगारवा समज्भे वसित्ता पुणरवि लोगतिएहिं जिकहिं देवेहिं ताहिं हट्ठाहिं जाव एवं वयासी ॥ १५५ ॥ "जय जय नंदा, जय जय भद्दा, भहं ते" जाव जयजयस पउंजंति ॥ १५६ ॥

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