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णं जांगसुवागणं जाव आरोग्गा या रोग्गं दारयं पयाया || जम्मणं समुद्रविजयाभिलावेगं नयव्वं, जावतं होउ णं कुमारे अरिट्ठनेमी नामेणं ॥ अरहा रिद्वनेमि दक्खे जान तिरियाबाससयाई कुमारे अगारवासमज्भे वसिता णं पुणरवि लोगतिहिं जियकणिएहिं देवेहिं तं चैव सव्वं भाणियव्वं, जाव दाणं दाइयाणं परिभाइचा ॥ १७२ ॥
नोमनाथ का जन्म श्रावण मुदी ५. के रोज चंद्र ननत्र चित्रा में हुआ, और कुमार का नाम समुद्र विजय राजाने अरिष्टनेमि रखा. विशेष अधिकार |
माताने जब पुत्र गर्भ में था तब अरिष्ट रत्न की चक्र बारा देखी थी उस बात को जानकर पिताने उपर का नाम रखा, मञ्जु जब युवक हुए तब माता
कहा कि योग्य कन्या
शिवादेवी ने लग्न करने का पुत्र को कहा, नेमिनाथ ने मिलने पर लग्न करूंगा. मित्रों के साथ एक समय कृष्ण वासुदेव की आयुवशाला में गए मित्रों के श्राग्रह से चक्र को उठाकर आंगुली पर फिराया, कमल नाल की तरह गनुस्य को ठंडा किया. लकड़ी की तरह कौमुदकी गड़ा की चढाई. और पांचजन्य शंख को मुंह से बजाया उन मन्त्रों से इतना आवाज हुआ कि हाथी घोड़े चमक कर अपना स्थान छोड इयर उधर भाग. लोग घत्रगगये वासुदेव के विना और कोई ऐसा बलवान नहीं था कि वो ऐसा कार्य करे जिस से शत्रुभय से कृष्णजी भी देखने को आये दोनों के बीच में मैमया नो भी कृष्णजी को नेमिनाथ से भीति हुई की ऐसा बलवान मेरा राज्य क्यों नहीं लेगा ? बलभद्र पास जाकर कहा कि नेमिनाथ ने मेरेशन को उड़ाये और मेरेसाथ युद्ध परिक्षा में भी युजये अधिक तेजी बनाई दोनों चिनाएँ पड़े नत्र आकाश वाणी हुई कि भोकृष्ण नीकर ने कह रखा है कि नेपिनाय दीक्षा लेंगे वो परन्तु ब्रह्मचारी की अधिक शक्ति है इसलिंग जो उसकी चिंता में दुःखी होने से शक्ति नष्ट होगी ऐसा विचार कर
इसलिये क्या करना !
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भूलगया कि नमिनाय निःस्पृह है. तत्र शांति हुई
स्यादी होवे तो घरकम्पनी ने अपनी