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(४५) पक्खंतरायलेहं कुमुश्रवणविबोहगं निसासोहगं सुपरिमदप्पणतलोवमं हंसपडुवन्नं जोइसमुहमंडगं तमरिपुं मयणसरापूरगं ससुद्ददगपूरगं दुम्मणं जणं दइअवज्जिअं पायएहिं सोसयंतं पुणो सोमचारुरूवं पिच्छइ मा गगणमंडलविलास। सोमचंकम्भमाणतिलगं रोहिणिमणहिप्रयवल्लहं देवी पुनचं. दं समुल्लसतं ६ ॥ ३८॥
. चन्द्र का वर्णन. छठे स्वप्न में निराला राणी ने चंद्रमा देखा वो चंद्र गौ का दूध फीण पाणी का विंदु चांदी के कलश इत्यादि सफेद वस्तु के समान उज्वल था हृदय
और नेत्रों को शांति देनेवाला मनोहर था और पूर्णिमा के चंद्र समान पूर्ण था अंधकार का समूह जो धन होकर गुफाओं में घुप्त जावे उसको दूर करने वाला दो पक्ष के बीच में अर्थात् शुक्ल पूर्णिमा के चंद्र समान पूर्ण था अंधकार का समूह जो धन होकर गुफाओं में घुसजावे उसको दूर करने वाला दो पक्ष के वीचर्म अर्थात् शुक्ल पूर्णीमा के चंद्रमा का सा प्रभाव वाला, कुमुद ( चंद्रविकाशी कमलों को जागृति करने वाला रात्री का भूपण. अच्छी प्रकार से मंजा हुवा दर्पण के तलेके समान हंसके समान सफेद ज्योतिपी देवों का भूपण अंधकार नाशक मदन के वाणों को पूरने वाला समुद्र में भरती ( ज्वार भाटा) लाने वाला वियोगी स्त्री पुरुषों को दुख देने वाला. और उसकी किरणों से लोही सुकाने वाला. ऐसा मनोहर उत्तम रूपवाले चंद्रको जो गगन मंडल में विशाल मनोहर चलते तिलक के समान था. रोहिणी मक्षत्र के हृदय को बल्लभ उदयमान था. वो राणी ने देखा.
तो पुणो तमपडलपरिप्फुडं चेव तेअसा पञ्चतरूपंरत्तासोगपगासकिंसुअसुअमुहगुंजद्धरागसरिसं कमलवणालंकरणं अंकणं जोइसस्स अंवरतलपईवं हिमपडलगग्गहं गहगणोरुनायगं रत्तिविणासं उदयस्थमणेसु मुहत्तसुहदसणं दुन्नि