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जो व्याकरसा में अधिक कठिन होने मे उसकी मिद्धि पंडिन भी नहीं कर सक्का या उसके उत्तर प्रधुने योचित दिये. जिन २ वालों की शंकाए पंडित के मनमें थी उनको इन्द्र ने अवधिनान मे जानकर भगवान से पूछा भगवान् ने उन सब के उत्तर भलीभांनि में दिये जिन्हें नुनकर पंडिन को आश्चर्य हुवा कि ऐसा छोटा बालक विना पढाए कहां से पंडिन होगया ? इन्द्र ने पंडिन से सब चात कहा कि यह बालक नहीं है त्रिलोकनाय है, जिम मुनकर उसने हाथ जोड़ कर अपने अपराध को खमाया और प्रभु को अपना गुरु माना जो प्रश्न पूछ. उसका समाधान प्रभु ने किया यह जिनन्द याकरणं बना जिममें १ संज्ञा स्त्र २ परिभाषा मृत्र ३ विधिसत्र, ४ नियम मृत्र, प्रनिपंध मृत्र, ६ अधिकार मृत्र, ७ अतिदश मृत्र, ८ अनुवाद मृत्र, ९ विभाषा मृत्र, १० विपाक मृत्र दश अधिकार का सवालाख श्लोक का महान् व्याकरण बना इन्द्र भी ब्राह्मण की सजनना मे प्रसन्न होकर बहुन द्रव्य देकर चला गया और प्रश्नु भी अपने घर को चले, मान पिना स्वनन परिवार घर को आने वाद पुत्र की विना से अधिक संतुष्ट होगयें और योग्य उम्र में ( युवावस्था में ) शुभ मुहन में बड़े उत्सव से नरवीर सामने की यशोदा नाम की पुत्री की महावीर प्रभु के साथ स्थादी की और उस गनी में प्रिय दर्शनों नामकी एक पुत्री हुई जिसकी पहावीर प्रभु के बहिन के लड़के नमाली के साथ स्यादी हुई.
समणम्स णं भगवनो महावीरस्स पिया कासवगुत्तेणं, तस्स एं तंग्रो नामधिज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-सिद्धत्ये इवा , सिज्जसे इ वा, जसंसे इ वा ॥ समणस्स णं भगवयो महावीरस्स माया वासिट्ठी गुत्तेणं, तीसे तयो नामधिज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-तिसलाइ वा, विदेहदिन्ना इवा, पि. अकारिणीइ वा ।। समणस्स णं भगवत्रो महावीरस्स पितिज्जे मुपासे, जिढे भाया नंदिवद्धणे, भगिणी सुदंसणा, भारिया जसोया कोडिन्ना गुत्तेणं ॥ संमणस्स णं भगवत्रो महावीरस्स घूमा कासवी गुत्तेणं, तीस दो नामधिज्जा एवमाहि: जंति, तंजहा-अपोज्जा इ वा, पियदंगणा इ वा-।। सम: