________________
( ६५ )
इंद्र ने उस समय बीर प्रभु की प्रशसा की कि छोटी उम्र में कैसे वीरत्व धारक है ! वो सुन कर एक तुच्छ हृदय वाले मिध्यात्वी देव को ast रोष हुआ कि मनुष्य में ऐसी धैर्यता कहां से होसक्ती है ! एक दम परीक्षा करने को वहां से उठा और रूप बदल कर छोटे बच्चे का रूप लेकर लड़कों के भीतर खेलने को लग गया पेड पर चढ़ते ही देव ने एक वडा सर्परूप लेकर पेड के आजु बाजु (चो तरफ ) लपेट गया दूसरे लडके तो कूद कूद के डर के मारे भागे परन्तु वीर प्रभु ने उस सर्प का मुँह पकड कर एक दम दूर फेंक दिया फिर देवता खेलने लगा और "हारे वो दूसरे को खंबे पर उठावे" ऐसी शरत मे खेलने लगे देवता जान कर हार गया और प्रभु जीत गये मान कर खंधे पर बैठाये और डराने को एक दम बड़े पेड़ जितना उंचा होगया लडके भागे परंतु वीर प्रभु ने ज्ञान का उपयोग कर जान लिया कि यह देव माया है जिससे उसको सीधा करने को दो चार गुक्कीएं मारकर अपना वीर्य बताया देवता भी समझ गया अपना रूप जैसा था वैसा कर बोला हे वीर ! आपकी प्रशंसा जैसी इन्द्र ने की वैसे ही थाप वीर है मैंने कहना नहीं माना परन्तु मार खाकर अनुभव से जान लिया, आप मेरा अपराध क्षमा करे ! ऐसा कहकर प्रभु को मुकुट कुंडल की भेटकर नमस्कार कर देव अपने स्थान को गया माता पिता को वीरत्व की बात और देव की भेट सुनकर बहुत आनन्द हुआ.
माता पिता का पुत्र को विद्यालय में भेजना |
मात पिता ने सामान्य पुत्र की तरह आठ वरस की उम्र में विद्यालय में भेजने का विचार कर सब तैयारी की ज्ञाति को भोजन देकर वर्द्धमान कुंवर को स्नान कराकर वस्त्राभूषण से अलंकृत कर तिलक कर हाथ में श्रीफल और सुवर्णमुद्रा देकर हाथी पर बैठाये और पंडित और विद्यार्थिओं को खुश करने it मेवा मिष्ठान वस्त्राभूषण वगैरह लेकर वार्जित्र के और सधवा औरतों के गीत के साथ विद्यालय की तरफ बड़ी धामधूम से पढाने के लिये लेगए.
इन्द्रने अवधि ज्ञान से इस बात को जान कर विचार किया कि यह भी आर्य हैं कि तीन लोक के पारगामी प्रभु को भी पढाने को भेजते है ! श्रामके पेडपर तोरण बांधना सरस्वती को पढाना, अमृत में मीठाश के लिए और चीझ डालनी, किंतु मेरा फर्ज है कि प्रभुका अविनय नहीं होने देना ऐसा विचार कर ब्राह्मण का रूप लेकर इन्द्र स्वयं वहां आया और प्रभु को ऐसे प्रश्न पूछे