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(६२) यह श्लोक लौकिक रीति से लिखा दीखता है क्योंकि सब धर्म कार्य कराने वाला तीन जगत् को चक्षु रूप होने पर भी सुरों को सूर्य वंध नहीं होसक्ता क्योंकि वैमानिक देवों को सुर कहते है उनकी सिद्धि सूर्य से अधिक है इसकी अपेक्षा ज्ञानी गम्य है। ___ छठे दिनको जागरण महोत्सव क्रिया अग्यारवें दिन को सब अशुचि कार्य को दूर कर वारहवे दिनको महावीर प्रभु के माता पिता ने जिमन ( दावत) किया.
जिमन में उस समय के अनुसार अशन लड्डु इलंबा कलाकंद वरफी खीर दुध पाक भजीए वगैरह अनेक जाति का भोजन. साथमें पीने का अनेक प्रकार का पानी, वा प्रवाही पदार्थ और मेवा द्राक्ष बदाम, पिस्ते, चारोली अनेक जाति के हरेक फल और स्वादिष्ट चूर्ण मसाले तैयार कराएं मंगाके रखे.
रिस्ते दारों को आमंत्रण । भोजन तैयार होने वाद मित्र न्याति (विरादरी) निजक (एक कुनया के) स्वजन और उन सब का परिवार और " ज्ञात" वंशके क्षत्रियों को बुलाए, उन सब के आने पर स्नान कर देव पूजन का अनिष्ट विघ्नों को दूर कर अच्छे वस्त्रों को पहर कर, थोड़े वजन के और बहु मूल्य के आभूषण पहर कर सिद्धार्थ राजा और त्रिशला रानी दोनों ही भोजन के समय में भोजन मंडप में आकर सुखासन उपर बैठे-और जिनों का आमंत्रण दीया था, वे आजाने पर सबके साथ सब पदार्थों को खाये पीते स्वाद लेते (थोडा खाकर विशेप फेंकते शेरड़ी की तरह ) खजूर की तरह. अधिक खाते और थोड़ा फेंकते. कितने क पदार्थों को संपूर्ण खाते. और कितनेक पदार्थों स्वादिष्ट देखकर परस्पर देने का आग्रह करते थे अर्थात् मनुष्यों के साथ आनंद से सिद्धार्थ राजा और त्रिशला रानी ने भोजन किया [जैनी वा जेनेतरों में भोजन विधि और उसका स्वाद सर्वत्र प्रसिद्ध होने से विपेश लिखने की आवश्यकता नहीं है ]
जिमिप्रभुत्तुत्तरा गयावित्रणं समणा श्रायंता चुक्खा परमसुइभूना तं मित्तनाइनियगसयणसबंधिपरिजणं नायए खत्तिए य विउलेणं पुप्फगंधवत्थमल्लालंकारेणं सक्कारिति