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सी हजार, लाखों की गिनती में लोग बडे पुरुष दे जाते थे और राजा प्रसन्न चित्त होकर पात्रों को देता था और दान दिलाना था और पूजन करना था । ( यहां पर समयानुसार दान का वर्णन )
जिनेश्वर के मंदिरों में अष्ट प्रकारी २१ प्रकारी अष्टोतरी, शांति स्नात्र इत्यादि अनेक प्रकार की पूजाएं कराई क्योंकि सिद्धार्थ गजा पार्श्वनाथ प्रभु का परम श्रावक था ।
विद्यार्थीओं की पाठशाला वासस्थान, (बोर्डिग) पुस्तक का भंडार, अनाथाश्रम, विधवाश्रम व औषधालय अपंग पशु स्थान, कन्या विद्यालय श्राविकालय वगैरह उस समय के योग्य प्रजा के हितार्थ जो जो बातों की त्रुटी थी वे संपूर्ण की और अपने राज्य में कोई भी दुःखी न रहे ऐसा महोत्सव किया।
तरणं समणस्स भगवो महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिवडियं करिंति, तर दिवसे चंदसूरंदसयिं कः रिंति, छट्ठे दिवसे धम्मजागरियं करिंति, इक्कारसमे दिवसे विक्कते निव्वचिए सुइजम्मकम्मकरणे, संपत्त वारसाहे दिवसे, विउलं असणपाएखाइमसाइमं उवक्खडात्रिंति, उवक्खडावित्ता मित्तनाइनिययसयण संबंधिपरिजणं नाए य खत्तिए आमंतित्ता तय पच्छा रहाया कयवलिकम्मा कयको उमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई पवराई वत्थाई परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा भोश्रण लाए भो - मंडवंसि सुहासणवरगया तेणे मित्तनाइनिययसंबंधिपरिजः नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं विउलं असण पाणखाइम साइमं यासाएमाणा विसाएमाणा परिभाषमाणा परिभुंजेमाया एवं वा विहरंति ॥ १०२ ॥
दश दिवसों का विशेष वर्णन |
उस चक्न महावीर प्रभु का पिता सिद्धार्थ राजा प्रथम दिन में स्थिति पति