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का ( कुल मर्यादा ) की तीसरे दिन को चंद्र सूर्य का दर्शन कराया।
चंद्र सूर्य की दर्शन विधि। गृहस्थ गुरु ( संस्कार कराने वाला विद्वान् ब्राह्मण अर्हन् देव की प्रतिमा के सामने स्फाटिक रत्न वा चांदी की चंद्र की मूर्ति स्थापन करा के प्रतिष्टा पूजा करके माता और बालक को स्नान कराके अच्छे वस्त्र पहरा कर चंद्रोदय के समय रात्रि में चंद्र सन्मुख माता पुत्र को बैठा कर ऐसा मंत्र पढे।। __उँ चंद्रोसि, निशा करोसि, । नक्षत्र पति रसि, ओषधि गर्नोसि, अस्य कुलस्य ऋद्धि वृद्धिं कुरुकुरु ऐसा बोल कर ग्रहस्थ गुरु मात्रा पुत्र को चंद्र के दर्शन करावे औह नमस्कार करावे, पीछे गुरु आशीर्वाद देवे ।
सर्वोपधि मित्र मरिचिराजिः सर्वापदां संहरणे प्रवीणः । करोतु वृद्धिं सकले पिवंशे युष्माक मिंदुः सततं प्रसन्नः (१)
सव औषधि युक्त किरणों का समूह वाला और सब दुःखों को दूर करने में निपुण, कलावान चंद्र निरंतर प्रसन्न होकर आपके वंश की वृद्धि करो। ___ जो चौदस वा श्रमावस्या के कारण अथवा बादल से चंद्र दर्शन न हो तोपूर्व में स्थापन की हुई चंद्र मूर्ति के दर्शन करावे पीछे वो मूर्ति को विसर्जन करे श्राज के समय में लोग में आरिसा ( आयना) के दर्शन कराते हैं
चंद्र दर्शन बाद सूर्य दर्शन विधि । दूसरे दिन मभात में सूर्योदय के समय. सुवर्ण वा तांबे की मूर्य मूर्ति धना कर पूर्व की तरह स्थापन कर ग्रहस्थ गुरु इस तरह मंत्र पढे । ___आँ अहं सूर्योसि, दिन करोसि. तमो पहोसि, सहस्र किरणोसि, जगच- क्षुरसि, प्रसीद, अस्य कुलस्य तुर्टि पुष्टिं प्रमोदं कुरु कुरु ऐसा सूर्य मंत्र उच्चार फर माता पुत्र को सूर्य के दर्शन करावे नमस्कार करा कर गुरु आशीर्वाद देवे ।
सर्व सुरा सुर वंद्यः कारयिता सर्व धर्म कार्याणाम् । 'भूया स्त्रि जगच्चक्षु मंगल दस्ते सपुत्राय (१)