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भाग सुन्दर मालुम होना था. मुद्रिका से अंगुली पीली होगई थी और सर्व के ऊपर दुपट्टा दोनों तरफ लटक रहा था. ऐसे अनेक आभूषण होने पर भी सुवर्ण का मणि रत्नों से जटित निपुण कारीगर का वनाया हुवा प्रधान वीरवलय ( जो दूसरा यदि कोई मुझे हराये तो उसे लेवे ऐसा बनाने वाला भूषण ) हाथ में धारण करा हुवा था उसकी अधिक मपा न कर इतना ही लिखना काफी होगा कि जैसे कल्पवृक्ष शोभायमान होता है उसी प्रकार राजा सिद्धार्थ भी वस्त्राभूषण से सुसज्जित, कोरंट वृत्तों के पुष्पों की माला से शोभायमान माधे पर छत्र धराकर जिसके दोनों बाजू चामर हुल रहे हैं जिसके दर्शन से मंगल जय की ध्वनीयें होरही हैं और अपने अनेक प्रधान मंत्री पोलिस नायक राजेश्वर तलवर (राजाने जिस को प्रसन्न होकर पट्ट बंध दिया है ) जमीदार, चोघरी, मंत्री, महामंत्री, ज्योतिषी, सिपाई अमात्य दास, सांवती, नगर निवासी प्रतिष्ठित पुरुष ) व्यापारी, नगर सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दून संधिपाल, ( Ambassador ) के साथ जैसे मेघ के खुल जाने के पश्चात् प्रकाश होने पर आकाश में तारों के मंडल के बीच चन्द्रमा शोभायमान होता है वैसे ही सर्व में शोभायमान होता हुवा राजा नर हृपभ, नरसिंह, राज तेज लक्ष्मी में सुन्दर शोभायमान स्नानागार से निकट सभा मंडप में आया और पूर्व दिशा सन्मुख सुखकर सिंहासन पर विराजमान हुवा.
मज्जघरा पडिनिक्खमित्ता जेसेच वाहिरिया उनडाणसाला तेथेव उवाग़च्छड़, उवागच्छित्ता सीहासांसि पुरत्याभिमुनिसी, निसीहत्ता चप्पणो उत्तरपुरच्छेिमे दिलीभाए अट्ठ महासलाई सेचवत्थपच्चुत्थयाई सिद्धत्वयकय मंगलोवयाराई रयावे, रयावित्ता पण दूरसामंते नाणामणिरयणमंडियं ग्रहिश्रपिच्छणिज्जं महग्यघवरपट्टणुग्गयं सराह - पट्टत्तिस्यचित्तताणं ईहामित्र उस भतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसर भचमरकुंजरवणलय उमलयभत्तिचित्तं प्रभितरियं जवणि यंत्रावे, यंत्रावेत्ता नाणामणिय एभत्तिचिनं