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(३६) उकिट्ठाए तुरिभाए चक्लाए चंडाए जवणाए उडाए सिग्घाए दिवाए देवगइए, तिरिश्रमसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झएं जोअणसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं उप्पयमाणे २ जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए विमाणे सकंसि सीहासणंसि सक्के देविंदे देवराया, तेणामेव उवागच्छङ्, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो एप्रमाणत्तिनं खिप्पामेव पञ्चप्पिणइ ॥ २६ ॥
हरिणी गोपी देवता पूर्व में कहे अनुसार ही असंख्यात द्वीपों और समुद्री को पार करता हुवा दिव्य गनि द्वारा सौधर्म देव लोक में जहां इन्द्र बैठा था यहां आया और इन्द्र महाराज को सर्व अपने कार्य की वार्ता सुनादी.
तेणं कालेणं तेणं समाएं समणे भगवं महावीरे तिलापोवगए प्रावि हुत्या, तंजहा-साहरिज्जिस्सामित्ति जागइ, साहरिजमाणे न जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ ॥३०॥
जिस समय भगवान महावीर को देवानन्दा की इंग्व में से उठाये उस समय उत्तराफालगुनी नक्षत्र था भगवान तो उस समय भी तीन ज्ञान के धारक थे इस से उठाने की बात तथा उठाकर दुमरी जगह रख दिया ये सब जानते थे किन्तु . उठाने का समय न जाने उस दार में टीकाकार कहते हैं कि उठाने का समय ज्याद हान से अवधि नानी जान सक्त है परन्तु हरिणगमपी का कोगल्य बताया है कि भगवान को ऐसी चातुर्यवा से उठाया कि उनको उठाये जाने की मालुम भी नहीं हुई
तेणं कालणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जैसे चासाणं तचे मासे पंचमे पक्ख आसोमबहुले, तस्सणं अस्सोअबहलस्स तेरसीपक्खेएं वासीइराइंदिएहि विडतेहिं तेसीइमस्स राइंदिअस्स अंतरा वट्टमाणे हिवाणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमिसिणा सक्वयणसंदिटेणं माहणकुंडग्गामारो नय