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( २६ ) युगलिक के जाड़े को उनके पूर्व भवके वरी देवने युगलिक क्षेत्र से उटाकर भरत क्षेत्र में रक्खे और मदिरा मांस इत्यादि अभक्ष पदार्थ का खान पान सिखाया जिस कारण से मरकर दोनों नर्क गये. उनकी सन्तान हरिवंश कहलाई. उत्कृष्ट काया वाले १०८ का एक साथ मोन में जाना।
पांच सो धनुप की काया वाले प्रथम तीर्थकर श्रीऋषभेदत्र स्वामी के नवाण (६९) पुत्र आठ भरत महाराज के पुत्र और स्वयं ऋपभंदव स्वामी सर्व १०८ एक साथ मोक्ष गये मध्यप काया वाले १०८ सौ पूर्व भी एक साथ मोक्ष गये परन्तु उत्कृष्ट काया वाले पूर्व में कभी नहीं गये इसलिये यह भी एक आश्चर्य जनक बात हुई.
असंयति की पूजा ऋषभदेव स्वामी के समय ब्राह्मण लोग देश विरति गौर अल्प परिग्रह वाले होने के कारण पूंजे नाते थे किन्तु अाठमे और नवमें तीर्थकर बीच के काल में ब्राह्मण निरंकुश होकर (तीर्थकर का अभाव होने से ) पुजान रहे हैं एक आश्चर्य जनक बात हुई कारण त्यागी की ही बहु मानता होती है.
ऐसे दस अाश्चर्य रूपी बात इस वर्तमान चौवीसी के समय में हुई.
श्रीमन् महावीर प्रभु का ब्राह्मण गोत्र में आना भी एक आश्चर्य जान कर इन्द्र विचार करता है कि ऐगे आश्चर्य होना सम्भव है. ____ नाम कर्म गोत्र अर्थात् गोत्र नाम का जो कर्म है वो यदि भोगना वेदना जीर्ण होना बाकी रहा हो तो उदग्र होने के कारण तीर्थकर भी भागने वास्ते ऐसे नीच गोत्र में आसक्ने हैं महावीर प्रभू के नाम कर्म गोत्र इत्यादि २७ भवों का वर्णन इस प्रकार है १ भवः पश्चिम महाविदेह में क्षिति प्रतिष्ठित नामी नगरी में राजा का नयसार नाम का जमींदार थे और वो राजाज्ञानुसार लकडीये लेने के हेतु अन्य कई चाकरों को लेकर और गाइयों लेकर जंगल में गया वहां कई साधू मार्ग भूत कर उस जंगल में आ निकले उन्हें देख कर हपायमान होता हुवा उनके सन्मुख जाकर विनय पूर्वक वंदना की
और अपने साथ लाकर गोचरी बहराई उन साधूओं ने उसे धर्मोपदेश दिया निप्त सुनने मे उसे समफिल हुत्रा साधूओं को सीधा मार्ग बतलाया जिससे