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रहते हैं इस कारण इन्द्र सहस्राक्ष कहलाता है ) मेघों का स्वामी, पाक दैत्य को शिक्षा करने वाला मेरू पर्वत की दक्षिण दिशा का अर्धलोक का स्वामी ऐरावत हाथी पर बैठने वाला, सुरों का इन्द्र, बत्तीस लाख विमान का स्वामी, आकाश समान निर्मल वस्त्र धारण करने वाला, योग्य स्थान पर नव माला मुकुट धारण करने वाला, नये सोने के मनोहर झूलने वाले कुंडलों से देदीप्यमान गालों वाला महान ऋद्धि, महान कांति, महावल, महायश महानुभाव महासुख लम्बी पुष्पों की माला को ऊपर से नीचे तक धारण करने से जिसका शरीर देदीप्यबान होरहा ऐसा इन्द्र सौधर्म देवलोक में सौधर्म अवतंसक विमान में सौधर्म सभा में शक नामी सिंहासन पर बैठा हुवा जिसकी सेवा में बत्तीस लाख वैमानिक ( विमानों में रहने वाले ) देव हैं चोरासी हजार सामानिक देव हैं; तेतीश त्रायत्रिंशक बड़े मंत्री देव हैं सोम, यम, वरुण, कुबेर यह चार जिसके लोकपाल हैं ट अग्र महिपी ( मुख्य देवियां ) सपरिवार, वाह्य, विचली और भीतर को ऐसी तीन परखदा और सात सेना ( गंधर्व नट, हय हाथी, रथ, भट्ट, वृषभ ) ऐसी सात प्रकार की सेना का स्वामी. चार दिशा में चोरासी हजार देवों से रक्षित ने सौधर्म वासी देवों से विभूषित और सर्व देव देवियों का स्वामी अग्रेसर अधिपति, पालने वाला महत्व पद पाकर उनको आज्ञा करने वाला, रक्षक, इन्द्र पणे के तेज से अपनी इच्छानुसार सर्व देवों से कार्य कराने वाला बड़े वार्जित्र श्रेणी जिसमें नाटक, गीत, वार्जित्र तंत्री, कांसी, तृटीत ( एक प्रकार का बाजा ) धनमृदंग पट इत्यादि वाजों की और गाने की आवाज से दिव्य सुख भोगने वाला इन्द्र देवलोक में बैठा है. "
सूत्र (१४ )
इमं चणं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं प्रोहिणा भरमा २ विहरइ, तत्थणं समयं भगवं महावीरं जंबुदवे दवे भार वा दाहिणड्ढ भर हे माहणकुंडगामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गन्भत्ताए वकंतं पासह, पासित्ता हट्ठतु चितमाएदिए दिए परमानंदिए पीचमणे
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