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अणुओगदाराई
८८ १२५. नेगम-ववहाराणं आणुपुग्वि- नंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी-
दव्वाइं लोगस्स कति भागं द्रव्याणि लोकस्य कतिभागं स्पृशन्ति फुसंति–कि संखेज्जइभागं -fक संख्येयतमभागं स्पृशन्ति ? फुसंति ? असंखेज्जइभागं फुसंति? असंख्येयतमभागं स्पृशन्ति ? संख्येसंखेज्जे भागे फुसंति? असंखेज्जे यान् भागान् स्पृशन्ति ? असंख्येयान् भागे फुसंति ? सव्वलोगं फुसंति? भागान् स्पृशन्ति ? सर्व लोकं स्पृशन्ति? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइ- एकद्रव्यं प्रतीत्य लोकस्य संख्येयतमभागं वा फुसंति, असंखेज्जइभागं भागं वा स्पृशन्ति, असंख्येयतमभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा वा स्पृशन्ति, संख्येयान् भागान् वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा संति, स्पृशन्ति, असंख्येयान् भागान् वा सव्वलोगं वा फुसंति । नाणादव्वाइं स्पृशन्ति, सर्वलोकं वा स्पृशन्ति । पडच्च नियमा सव्वलोगं फूसंति। नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्व
लोकं स्पृशन्ति ।
नेगम-ववहाराणं अणाणपुग्वि- नगम-व्यवहारयोः अनानुपूर्वीदव्वाणं पुच्छा। एगदव्वं पडुच्च द्रव्याणां पृच्छा। एकद्रव्यं प्रतीत्य नो संखेज्जइभागं फुसंति, नो संख्येयतमभागं स्पृशन्ति, असंख्येयअसंखेज्जइभागं फुसंति, नो संखेज्जे तमभागं स्पृशन्ति, नो संख्येयान् भागे फुसंति, नो असंखज्जे भागे भागान् स्पृशन्ति, नो असख्येयान् फुसंति, नो सव्वलोगं फुसंति। भागान् स्पृशन्ति, नो सर्वलोकं स्पृशनाणादव्वाइं पडुच्च नियमा
न्ति । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सव्वलोगं फुसंति। एवं अवत्त
सर्वलोकं स्पृशन्ति। एवम् अवक्तव्वगदव्वाणि विभाणियब्वाणि ॥
व्यकद्रव्याणि अपि भणितव्यानि ।
१२५. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी
द्रव्य लोक के कितने भाग का स्पर्श करते हैं।" -क्या संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं ?
एक द्रव्य की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं, असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं अथवा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमत: समूचे लोक का स्पर्श करते हैं।
नैगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग का स्पर्श करते हैं -क्या संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं ?
एक द्रव्य की अपेक्षा वे लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संख्येय भागों का स्पर्श नहीं करते हैं, असंख्येय भागों का स्पर्श नहीं करते हैं, समूचे लोक का स्पर्श नहीं करते हैं । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक का स्पर्श करते हैं। इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्यों का भी प्रतिपादन करना चाहिए।
१२६. नेगम-ववहाराणं आणपुब्धि- नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी-
दव्वाइं कालओ केवच्चिरं हाति? द्रव्याणि कालत: कियच्चिरं भवन्ति? एगदव्वं पडच्च जहणणं एग एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन एक समयम्, समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जंकालं। उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । नानानाणादव्वाइं पडच्च नियमा द्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वाध्वासव्वद्धा। एवं दोणि वि। नम् । एवं द्वे अपि।
१२६. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी
द्रव्य काल की दृष्टि से कितने समय तक होते हैं ?
एक द्रव्य की अपेक्षा वे जघन्यत: एक समय और उत्कृष्टतः असंख्य काल तक होते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः सर्वकाल में होते हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों के काल का भी प्रतिपादन करना चाहिए।
१२७. नेगम-ववहाराणं
आणुपुग्वि
नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्या- १२७ नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी
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