Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 400
________________ तेरहवां प्रकरण : सूत्र ६४०-६५० अहीणश्वरं अणवक्रं अवादद्धक्खरं अक्वलियं अमिलियं अवच्यामेलियं परिपुष्णं परिपुरण पोसं कंठोट्टयमुक् गुरुयायणो वगयं से णं तस्य वाचणाए पुच्छणा परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्यमिति कट्टु ॥ ६४८. नेगमस्स एगो अवडतो आगमओ एगे दबाए, दोणि अणवत्ता आगमओ दोण्णि दव्वाया, तिष्णि अणुवउता आगमओ तिण दव्वाया, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइया ते नेगमस्स आगमओ दव्वाया । एवमेव ववहारस्स वि । संग्रहस्त एगो वा अणेगा वा अणुयतो वा अणुवत्ता वा आगमओ दवाए वा दव्वाया वा से एगे दव्वाए । उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वाए, पुहत्तं नेच्छइ । तिन्हं सहनयाणं जाणए अणुवउसे अवत्थू कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वाए ॥ ६४६. से कि तं नागमओ दवाए ? नोआगमओ दवाए तिविहे पण्णले, तं जहा जाणगसरीरदव्वाए भवियसरीरदवाए जाणगसरीर-मवियसरीर वतिरिते दव्वाए || ६५०. से कि तं जाणणसरीरदग्याए ? जाण सरीरदव्वाए - आए त्ति पयत्याहिगार जाणगस्स जं सरीरयं Jain Education International अनत्यक्षरम् अव्याविद्धाक्षरम् अस्खलितम् अमोलिनम् अव्यत्याअंडितं प्रतिपूर्ण प्रतिपोषण्ठोष्ठ वित्रमुक्तं गुरुवाघनोपगतं स तत्र वाचनया प्रच्छनया परिवर्तनया धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया । कस्मात् ? अनुपयोगो द्रव्यमिति कृत्वा । नैगमस्य एक: अनुपयुक्तः आगमतः एको द्रव्याय:, द्वौ अनुपयुक्तौ आगमतो द्वौ द्रव्यायो, त्रयः अनुप युक्ता: आगमतस्त्रयः द्रव्यायाः एवं यावन्तः अनुपयुक्ता: तावन्तस्ते नैगमस्य आगमतो द्रव्यायाः । एवमेव व्यवहारस्यापि । सङ्ग्रहस्य एकः वा अनेके वा अनुपयुक्तः वा अनुपयुक्ताः वा आगमतो द्रव्यायः वा द्रव्याया: वा स एको द्रव्याय: । ऋजुसूत्रस्य एक: अनुपयुक्त: आगमतः एको द्रव्याय:, पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः अवस्तु । ? यदि ज्ञः अनुपयुक्त: कस्मात् भवति । स एष आगमतो द्रव्यायः । न अथ किस नोआगमतो द्रव्यायः ? नोआगमतो द्रव्यायस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा ज्ञशरीरद्रव्यायः भव्यशरीरद्रव्याय: ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्तो द्रव्यायः । अथ कि स ज्ञशरीरद्रव्याय ? ज्ञशरीरद्रव्यायः- आयः इति पदार्थाधिकारज्ञस्य यत् शरीरकं व्यपगत For Private & Personal Use Only नामसम कर लिया, घोषसम कर लिया, जिसे वह हीन, अधिक या विपर्यस्त अक्षर रहित अस्थतियों से मिश्रित, अन्य ग्रन्थों के वाक्यों से अमित प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्ण घोषयुक्त कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त है। वह उस [आय पद ] के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन, और धर्मकथा में प्रवृत्त आगमतः द्रव्य आय है । वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है । ६४८. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य आय है. दो अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य आय हैं, तीन अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य आय हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्य आय हैं। इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमतः द्रव्य आय हैं। संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं । आगमतः एक द्रव्य आय है अथवा अनेक द्रव्य आय हैं, वह एक द्रव्य आय है। ऋजुसूत्रनय जुन की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य आय है। भिन्नता उसे इष्ट नहीं है । तीनों श दनयों [शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत ] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है, क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता। वह आगमतः द्रव्य आय है । ६४९. वह नोआगमतः द्रव्य आय क्या है ? नोआगमतः द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे ज्ञशरीर द्रव्य आय, भव्यशरीर द्रव्य आय, जशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आय । ६५०. वह जशरीर द्रव्य आय क्या है ? ज्ञशरीर द्रव्य आय -आय इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर -- www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470