Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तेरहवां प्रकरण : सूत्र ६६३-६७४
३६७
नामझवणा ठवणझवणा क्षपणा स्थापनाक्षपणा द्रब्यक्षपणा दव्वझवणा भावझवणा॥ भावक्षपणा।
नाम क्षपणा, स्थापना क्षपणा, द्रव्य क्षपणा और भाव क्षपणा।
६७१. नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
नाम-स्थापने गते।
६७१. नाम स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं ।[देखें, सू०
६७२. से कि तं दविज्झवणा? वन्व
ज्झवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआगमओ य नोआगमओय ।।
अथ कि सा द्रव्यक्षपणा ? ध्य- ६७२. वह द्रव्य क्षपणा क्या है ? क्षपणा द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा
द्रव्यक्षपणा के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआगमतश्च नोआगमतश्च ।
आगमत: और नोआगमतः ।
६७३. से कि तं आगमओ दव्व- अथ कि सा आगमतो द्रव्य- ६७३. वह आगमतः द्रव्य क्षपणा क्या है ?
ज्झवणा? आगमओ दव्वझवणा क्षपणा? आगमतो द्रब्यक्षपणा--- आगमतः द्रव्य क्षपणा-जिसने क्षपणा यह ---जस्स णं झवणे त्ति पदं सिक्खियं यस्य क्षपणा इति पद शिक्षितं स्थितं पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित कर ठिय जियं मियं परिजियं नामसमं चित मितं परिचितं नामसमं घोष- लिया, मित कर लिया, परिचित कर लिया, घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं समम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् नामसम कर लिय, घोषसम कर लिया, जिसे वह अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमि- अध्याविद्धाक्षरम् अस्खलितम अमीलि- हीन, अधिक या विपर्यस्त अक्षर रहित, अस्खलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं तम् अव्यत्यानंडितं प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्ण
लित, अन्य वर्गों से अमिश्रित, अन्य ग्रन्यों के पडिपुण्णघोस कंठो?विप्पमुक्कं घोष कण्ठोष्ठविप्रमुक्त गुरुवाधनोपगतं, वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषगुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वाय- सा तत्र वाचनया प्रच्छनया परिवत्तं- युक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा गुरु णाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्म- नया धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया । की वाचना से प्राप्त है । वह उस [क्षपणा पद] कहाए, नो अणुप्पेहाए। कम्हा? कस्मात् । अनुपयोगो द्रव्यमिति के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में अणवओगो दव्वमिति क१ ॥ कृत्वा ।
प्रवृत्त आगमत: द्रव्यक्षपणा है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है।
६७४. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आग- नगमस्य एको अनुपयुक्त: आग- ६७४. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति
मओ एगा दव्वझवणा, दोण्णि मत: एका द्रव्यक्षपणा, द्वौ अनुपयुक्ती आगमत: एक द्रव्य क्षपणा है। दो अनुपयुक्त अणुवउत्ता आगमओ दोण्णीओ आगमतो द्वे द्रव्यक्षपणे, त्रयः व्यक्ति आगमत: दो द्रव्य क्षपणा है। तीन दव्वझवणाओ, तिणि अणवउत्ता अनुपयुक्ताः आगमतः तिस्रः द्रव्य- अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य क्षपणा आगमओ तिण्णीओ दव्वझव- क्षपणाः, एवं यावन्तः अनुपयुक्ताः है। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं णाओ, एवं जावइया अणव उत्ता तावत्यः ताः नैगमस्य आगमतो द्रव्य- नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्य तावइयो ताओ नेगमस्स आगमओ क्षपणा: । एवमेव व्यवहारस्यापि । क्षपणा है। दव्वझवणाओ। एवमेव ववहार- संग्रहस्य एक: वा अनेके वा अनुप- इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी स्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा युक्तः वा अनुपयुक्ताः वा आगमतो जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमतः वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा द्रव्यक्षपणा वा द्रव्यक्षपणाः वा सा
द्रव्य क्षपणा है। आगमओ दव्वझवणा वा दव- एका व्यक्षपणा । ऋजुसूत्रस्य एकः ___संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है ज्झवणाओ वा सा एगा दव्वज्झ- अनुपयुक्तः आगमत: एका द्रव्य
अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः वणा। उज्जुसुयस्स एगो अणवउत्तो क्षपणा, पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां
एक द्रव्य क्षपणा है अथवा अनेक द्रव्य क्षपणा आगमओ एगा दव्वझवणा, शब्दनयाना शः अनुपयुक्तः अवस्तु । हैं, वह एक द्रव्य क्षपणा है। पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं कस्मात् ? यदि ज्ञः अनुपयुक्तः न
___ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त जाणए अणुवउत्ते अवस्थु । कम्हा? भवति । सा एषा आगमतो द्रव्य
व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य क्षपणा है। भिन्नता जह जाणए अणुवउत्ते न भवइ। अपणा ।
उसे इष्ट नहीं है। से तं आगमओ वव्वझवणा॥
तीन शब्दनयों [शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत]
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