Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 395
________________ ३५८ ६२४. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वन्यणे, दोणि अणुवत्ता आगमओ दोणि दव्यज्भषणाई, तिणि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णि दव्वज्भयणाई, एवं जावइया अणुवत्ता तावइयाई ताई नेगमस्स आगमओ भय गाई। एवमेव यवहारस्त वि संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुउत्तो वा अणुवत्ता वा आगमओ दवणे वा दव्ययणाणि वा से एगे दव्वज्भयणे । उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दब्वभषणे, पुहतं नेच्छइ तिन्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउसे न भव से तं आगमओ दवणे || 1 ६२५. से किं तं नोआगमओ दव्वज्भयणे ? नोआगमओ दव्वज्भयणे तिविहे पण ते तं जहा जानग सरीरदश्वश्कपणे भवियसरीर बम्बम्भपणे जाणगसरीर-मविय सरीर-वतिरित्ते दव्वज्भयणे || नंगमस्य एको अनुपयुक्तः आगमतः एकं प्राध्ययनम् अनुपयुक्तौ आगमतो द्वे द्रव्याध्ययने, त्रयः अनुपपुरता आगमत: त्रीणि प्रच्याध्ययनानि एवं यावन्तो अनुपयुक्ताः तावन्ति तानि नैगमस्य आगमतो व्याध्ययनानि एवमेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एकः वा अनेके वा अनुपयुक्तः वा अनुपयुक्ताः वा आगमतो द्रव्याध्ययनं वा द्रव्याध्ययनानि वा तद् एकं द्रव्याध्ययनम् । ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः एकं द्रव्याध्ययनम्, पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां शब्दनयानां अनुपयुक्त अवस्तु कस्मात् ? यदि शः अनुपयुक्त न भवति । तदेतद् आगमतो द्रव्याध्ययनम् । । Jain Education International و अथ किं तद् नोआगमतो द्रव्याध्ययनम् ? नोआगमतो द्रव्याध्ययनं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा ज्ञशरीरद्रव्याध्ययनं भव्यशरीरद्रव्याध्ययनं हरारीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्तं इव्याध्ययनम् । ६२६. से किं तं जाणगसरीरदव्व अथ किम्बशरीरस्याध्ययनम् ? ज्भयणे ? जाणगसरीरदव्वज्भयणे ज्ञशरीरद्रव्याध्ययनम् अध्ययनम् - अज्झयणे ति पयत्थाहिगार जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुयचाविय चतदेहं जीवविष्वज सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसोहियागयं वा सिद्ध सिलातलगयं वा पासिता णं कोई बएन्जाअहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं अज्झयणेत्ति इति पदार्थाधिकारज्ञस्य यत् शरीरक व्यपगत च्युत-च्यावित त्यक्तदेहं जीवविग्रही शय्यागतं वा संस्तारतं वा निषीधिकागतं या सिद्धशिलातलगतं वाट्या कोऽपि वदेत् अहो अन शरीरसमुच्कृपेण जिनविष्टेन भाग अध्ययनम् इति पदम् आख्यातं प्रज्ञापितं प्ररूपितं दर्शितं निर्दाशतम For Private & Personal Use Only अणुओगदाराई द्रव्य अध्ययन है । वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से होता है। ६२४. नैगम नय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य अध्ययन है, दो अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य अध्ययन हैं, तीन अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य अध्ययन हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्य अध्ययन हैं । इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमत: द्रव्य अध्ययन हैं । संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः एक द्रव्य अध्ययन है अथवा अनेक द्रव्य अध्ययन हैं, वह एक द्रव्य अध्ययन है । ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य अध्ययन है । भिन्नता उसे इष्ट नहीं है । " तीन नव [शब्द समभिरूद, एवंभूत] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता । वह आगमतः द्रव्य अध्ययन है । ६२५. वह नोआगमतः द्रव्य अध्ययन क्या है ? नोआगमतः द्रव्य अध्ययन के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—ज्ञशरीर द्रव्य अध्ययन, भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन, ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अध्ययन । ६२६. वह ज्ञशरीर द्रव्य अध्ययन क्या है ? जशरीर द्रव्य अध्ययन इस अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी निमित्त से प्राणच्युत किया हुआ, उपचय रहित और जीव विप्रमुक्त है उसे शय्या, बिछौने श्मशानभूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर कोई कहे - आश्चर्य है इस पौद्गलिक शरीर ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार अध्ययन इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन " www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470