Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ ३६० अणुओगदाराई से तं नोआगमओ भावज्झयणे । से तदेतद् नोआगमतो भावाध्ययनम् । तं भावज्झयणे। से तं अज्झयणे॥ तदेतद् भावाध्ययनम् । तदेतद् अध्ययनम। नोआगमत: भाव अध्ययन है।' वह भाव अध्ययन है। वह अध्ययन है। ६३२. से कितं अज्झीणे? अझोणे अथ किं तद् अक्षीणम् ? अक्षीणं ६३२. वह अक्षीण क्या है ? चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-नाम- चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-नामाक्षीणं अक्षीण के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेज्झोणे ठवणझीणे दव्वज्झीणे स्थापनाक्षीणं द्रव्याक्षीणं भावाक्षीणम् । नाम अक्षीण, स्थापना अक्षीण, द्रव्य अक्षीण भावज्झीणे ॥ और भाव अक्षीण । ६३३. नाम-ढवणाओ गयाओ॥ नाम-स्थापने गते । ६३३. नाम स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं। [देखें सू. ९-११]। ६३४. से कि तं दव्वज्झीणे? दव्व- अथ किं तद् द्रव्याक्षीणम्। ६३४. वह द्रव्य अक्षीण क्या है ? झोणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-- द्रव्याक्षीणं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा द्रव्य अक्षीण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआगमओ य नोआगमओ य॥ आगमतश्च नोआगमतश्च । आगमत: और नोआगमतः । ६३५. से कितं आगमओ दव्वज्झीणे? अथ किं तद् आगमतो द्रव्या- अथ किं तद् आगमतो द्रव्या ६३५. बह आगमत: द्रव्य अक्षीण क्या है ? आगमओ दव्वझीणे-जस्स णं क्षीणम् ? आगमतो द्रव्याक्षीणम् - आगमत: द्रव्य अक्षीण-जिसने अक्षीण अज्झोणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं यस्य अक्षीणम् इति पदं शिक्षितं यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित जियं मियं परिजियं नामसमं घोस- स्थितं चितं मितं परिचितं नामसमं कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर समं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं घोषसमम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अव्याविद्धाक्षरम् अस्खलितम् अमीलि लिया, जिसे वह हीन, अधिक या विपर्यस्त अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्ण- तम् अव्यत्यानेडितं प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्ण अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्गों से घोसं कंठो?विप्पमुक्कं गुरुवायणो- घोषं कण्ठोष्ठविप्रमुक्तं गुरुवाचनोपगतं, अमिश्रित, अन्य ग्रन्थों के वाक्यों से अमिश्रित, धगयं, से णं तत्थ वायणाए तत् तत्र वाचनया प्रच्छनया परिवर्त प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोष युक्त, कण्ठ और होठ पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नया धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया । से निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त नो अणुप्पेहाए । कम्हा? अणुव- कस्मात् ? अनुपयोगो द्रव्यमिति । है । वह उस [अक्षीण पद] के अध्यापन, प्रश्न, ओगो दवमिति कटु ॥ कृत्वा । परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त आगमतः द्रव्य अक्षीण है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है। ६३६. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आग- नेगमस्य एकः अनुपयुक्तः आगमत: ६३६. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति मओ एगे दव्वज्झोणे, दोणि एक द्रव्याक्षीणम्, द्वौ अनुपयुक्तो आगमत: एक द्रव्य अक्षीण है। दो अनुपयुक्त अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दब्व- आगमतोद्वे द्रव्याक्षीणे, त्रयः अनुप- व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य अक्षीण हैं, तीन ज्झीणाई, तिणि अणुवउत्ता युक्ताः आगमत: त्रीणि द्रव्याक्षीणानि, अनुपयुक्त व्यक्ति आगमत: तीन द्रव्य अक्षीण आगमओ तिण्णि दव्वज्झीणाई, एवं यावन्तः अनुपयुक्ता: तावन्ति हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं तानि नंगमस्य आगमतो द्रव्याक्षी- नंगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्य ताई नेगमस्स आगमओ दव्वज्झी- णानि। एवमेव व्यवहारस्यापि । अक्षीण हैं। णाई। एवमेव ववहारस्स वि। सङ्ग्रहस्य एकः वा अनेके वा ___ इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी संगहस्स एगो वा अणेगा वा अण- अनुपयुक्तः वा अनुपयुक्ताः वा आगमतो जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमतः वउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ द्रव्याक्षीणं वा द्रव्याक्षीणानि वा तद् द्रव्य अक्षीण हैं। दव्यज्झीणे वा दव्वज्झीणाणि वा एक द्रव्याक्षीणम् । ऋजुसूत्रस्य एकः संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति से एगे दव्वज्झीणे। उज्जस्यस्स अनुपयुक्तः आगमत: एक द्रव्याक्षीणम्, है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमत: Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470