Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 385
________________ ३४८ अणुओगदाराई सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन :-ऊपर कथित सातों ही वर्गणाओं का एक जीव अनुक्रम से स्पर्श कर परित्याग करता है । लोक में जितने भी औदारिक वर्गणा के पुद्गल हैं सब से पहले जीव उनका स्पर्श करता है। औदारिक वर्गणा के पुद्गलों का स्पर्श करते समय बीच में अन्य वर्गणाओं के पुद्गलों का स्पर्श होता है उनकी गणना नहीं की जाती है । औदारिक वर्गणा के सारे पद्गलों का स्पर्श करने के बाद वैक्रिय शरीर की सारी वर्गणाओं का स्पर्श करता है। सातों वर्गणाओं को इस क्रम से स्पर्श करने में जितना समय लगता है उसे सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहा जाता है। बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन:-मेरु पर्वत से आरम्भ होकर अलोक तक आकाशप्रदेशों की असंख्यात श्रेणियां समस्त दिशाओं और विदिशाओं में फैली हुई हैं। उन सब आकाश प्रदेशों को एक जीव जन्म और मृत्यु से स्पर्श करता है । बाल के अग्र भाग जितना स्थान भी नहीं छोड़ता, उसे बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन : -मेरु पर्वत से लेकर अलोक तक आकाश प्रदेशों की असंख्यात श्रेणियां निकली हुई हैं। उनमें से प्रत्येक श्रेणी पर अनुक्रम से जन्म-मरण करते-करते लोक के अन्त यानी अलोक तक बीच के एक भी प्रदेश को छोड़े बिना सब प्रदेशों का स्पर्श करे । एक के बाद उससे लगी हुई दूसरी श्रेणी पर, तत्पश्चात् तीसरी श्रेणी पर और फिर चौथी श्रेणी पर, इस प्रकार असंख्यात आकाश श्रेणियों में अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे। तब सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन होता है। एक श्रेणी का स्पर्श करते-करते और अनुक्रम से उसे पूरा करने से पहले अगर अन्य श्रेणी का स्पर्श करे या उसी श्रेणी के आगे-पीछे का स्पर्श करे तो वह श्रेणी गिनती में नहीं आती। अन्य श्रेणी का स्पर्श व्यर्थ समझना चाहिए। श्रेणी का स्पर्श करना तभी सार्थक है जब मेर से आरम्भ करके अनुक्रम से सब आकाश प्रदेशों को लोक के अन्त तक स्पर्श करें। बादर काल पुद्गलपरावर्तन :-समय, आवलिका, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, पूर्व (सत्तर लाख छप्पन हजार वर्ष), पल्य, सागर, अवसर्पिणीकाल, उत्सर्पिणीकाल, कालचक्र--- इन सब कालों को जन्ममरण के द्वारा स्पर्श करने पर बादर काल पुद्गलपरावर्तन होता है। सूक्ष्म काल पुदगलपरावर्तन :-- समय से लेकर कालचक्र पर्यन्त अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे । जैसे पहले अवसर्पिणी काल लगे तो उसके पहले समय में जन्म लेकर मरे । फिर दूसरी बार जब अवसर्पिणी काल लगे तो उसके दूसरे समय में जन्म लेकर मरे । इस प्रकार करते-करते जब आवलिका का काल पूरा हो तब तक ऐसा करें। उसके बाद जो अवसर्पिणी काल आए तब उसकी पहली आवलिका में जन्म लेकर मरे, इस तरह समय के अनुसार स्तोक पूरा होने तक आवलिका में अनुक्रम से जन्म ले और मरे । इसी प्रकार स्तोक, लव आदि सब कालों में अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे तब काल से सूक्ष्म पुदगलपरावर्तन होता है। बादर भाव पुद्गलपरावर्तन :... पांच वर्ण (काला, पीला, नीला, लाल और श्वेत) दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श-इन बीस प्रकार के समस्त पुद्गलों का जन्म-मरण करके स्पर्श करे तो भाव से बादर पुद्गलपरावर्तन होता है। सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन :-लोक में जितने भी काले वर्ण के पुद्गल हैं उन सबका अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे । जैसे पहले एक गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, फिर दो गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, इस प्रकार अनन्त गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, काले वर्ण के पुद्गल का स्पर्श करते-करते यदि बीच में अन्य वर्ण (पीला, नीला आदि) वाले पुद्गल का स्पर्श करे तो उनकी स्पर्शना गिनती में नहीं गिनी जाती। जहां तक स्पर्शना हुई थी वहां से आगे स्पर्शना करने पर वह गिनती में आती है। इस प्रकार अनुक्रम से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के २० प्रकारों का आरम्भ से अन्त तक स्पर्शना करने पर भाव से सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन कहलाता है। उपर्युक्त आठ प्रकार के परावर्तन करने पर एक पुद्गलपरावर्तन होता है। कर्मग्रन्थ के अनुसार पुद्गलपरावर्तन कर्मग्रन्थ में पुद्गलपरावर्तन के चार भेद हैं - १. द्रव्य पुद्गलपरावर्तन २. क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन ३. काल पुद्गलपरावर्तन ४. भाव पुद्गलपरावर्तन । इनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं बादर और सूक्ष्म । यह पुद्गलपरावर्तन अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी काल के बराबर है। यह लोक अनेक प्रकार की पुद्गल वर्गणाओं से भरा हुआ है । उन वर्गणाओं में आठ वर्गणाएं ग्रहण योग्य बतलाई गई हैं अर्थात् वे जीव के द्वारा ग्रहण की जाती हैं। जीव उन्हें ग्रहण करके उनसे अपना शरीर, वचन, मन वगैरह की रचना करता है। वे वर्गणाएं हैं-औदारिक ग्रहणयोग्य वर्गणा, वैक्रिय ग्रहणयोग्य वर्गणा, आहारक ग्रहणयोग्य वर्गणा, तैजस ग्रहणयोग्य वर्गणा, भाषा ग्रहणयोग्य वर्गणा, आनापान ग्रहणयोग्य वर्गणा, मनोग्रहणयोग्य वर्गणा और कार्मण ग्रहणयोग्य वर्गणा । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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