Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 346
________________ ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५६६-५७५ ३०६ -कालियसुयपरिमाणसंखा दिदि- तद्यथा कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या जैसे- कालिकश्रुत परिमाण संख्या और वायसुयपरिमाणसंखा य॥ दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या च । दृष्टिवादश्रुत परिमाण संख्या । ५७१. से कि तं कालियसुयपरिमाण- अथ कि सा कालिकश्रुतपरिमाण- ५७१. वह कालिकश्रुत परिमाण संख्या क्या है ? संखा? कालियसुयपरिमाणसंखा संख्या ? कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या कालिकश्रुत परिमाण संख्या के अनेक अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा--- अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पर्यव प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पर्यव संख्या, अक्षर पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघाय- संख्या अक्षरसंख्या संघातसंख्या पद- संख्या, संघात संख्या, पद संख्या, पाद संख्या, संखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा संख्या पादसंख्या गाथासंख्या श्लोक- गाथा संख्या, श्लोक संख्या, वेष्टक संख्या, सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्ति- संख्या वेष्टकसंख्या नियुक्तिसंख्या अनु- नियुक्ति संख्या, अनुयोगद्वार संख्या, उद्देशक संखा अणुओगदारसंखा उद्देसग- योगद्वारसंख्या उद्देशकसंख्या अध्ययन- संख्या, अध्ययन संख्या, श्रुतस्कन्ध संख्या और संखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा संख्या श्रुतस्कन्धसंख्या अंगसंख्या । अंग संख्या । वह कालिकश्रुत परिमाण संख्या अंगसंखा। से तं कालियसुयपरि- सा एषा कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या । माणसंखा ॥ ५७२. से कि तं दिट्टिवायसुयपरिमाण- अथ कि सा दृष्टिवादश्रुतपरि- ५७२. वह दृष्टिवादश्रुत परिमाण संख्या क्या संखा? दिदिबायसुयपरिमाणसंखा माणसंख्या ? दृष्टिवादश्रुतपरिमाण- है ? अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा- संख्या अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - दृष्टिवादश्रुत परिमाण संख्या के अनेक पज्जवसंखा अक्खरखा संघाय- पर्यवसंख्या अक्षरसंख्या संघातसंख्या प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -पर्यव संख्या, अक्षर संखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा पदसंख्या पादसंख्या गाथासंख्या संख्या, संघात संख्या, पद संख्या, पाद संख्या, सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्ति- श्लोकसंख्या वेष्टकसंख्या नियुक्तिसंख्या गाथा संख्या, श्लोक संख्या, वेष्टक संख्या, संखा अणओगदारसंखा पाहुडसंखा अनुयोगद्वारसंख्या प्राभृतसंख्या प्राभू- नियुक्ति संख्या, अनुयोगद्वार संख्या, प्राभृत पाहुडियासंखा पाहडपाहुडियासंखा तिकासंख्या प्राभृतप्राभृतिकासंख्या संख्या, प्राभूतिका संख्या, प्राभूतप्राभूतिका वत्थुसंखा । से तं दिट्ठिवायसुयपरि- वस्तुसंख्या। सा एषा दृष्टिवादश्रुत- संख्या और वस्तु संख्या। वह दृष्टिवादश्रुत माणसंखा । से तं परिमाणसंखा ॥ परिमाणसंख्या। सा एषा परिमाण- परिमाण संख्या है। वह परिमाण संख्या संख्या। ५७३. से कि तं जाणणासंखा? अथ कि सा ज्ञानसंख्या ? ज्ञान- ५७३. वह ज्ञान संख्या क्या है ? जाणणासंखा-जो जं जाणइ, त संख्या-यो यज्जानाति, तद्यथा - ज्ञान संख्या--जो जिसे जानता है। [वह जहा-सई सद्दिओ, गणियं गणि- शब्दं शाब्दिक:, गणितं गणितज्ञः, उसे जानने के कारण अभेदोपचार से ज्ञान यओ, निमित्तं नेमित्तिओ, कालं निमित्तं नैमित्तिकः, कालं कालज्ञानी, संख्या है।] जैसे -शब्द को जानने वाला कालनाणी, वेज्जयं वेज्जो। से तं वैद्यक वैद्य. । सा एषा ज्ञानसख्या । शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ, जाणणासंखा॥ निमित्त को जानने वाला नैमित्तिक, काल को जानने वाला कालज्ञानी, वैद्यक को जानने वाला वैद्य होता है । वह ज्ञान संख्या है। ५७४. से कि तं गणणासंखा? गणणा- अथ कि सा गणनासंख्या ? ५७४. वह गणना संख्या क्या है ? संखा एक्को गणणं न उवेइ, गणनासंख्या-एक: गणन न उपति, गणना संख्या-'एक' गणना संख्या में दुप्पभिइ संखा, तं जहा-संखेज्जए द्विप्रभूति: संख्या, तद्यथा--सख्येय- नहीं है। दो से लेकर संख्या चलती है, जैसे असंखेज्जए अणंतए॥ कम् असंख्येयकम् अनन्तकम् । -संख्येय, असंख्येय, अनन्त । ५७५. से कि तं खेज्जए ? संखेज्जए अथ किं तत् संख्येयकम् ? ५७५. वह संख्येय क्या है ? तिविहे पण्णते, तं जहा--जहण्णए संख्येयकं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा संख्येय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेउक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए॥ जघन्यकम् उत्कर्षकम् अजघन्योत्कर्ष- जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य-अनुत्कृष्ट कम् । [मध्यम] । Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470