Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 379
________________ ३४२ ६१५. से कि तं खेतसमोयारे ? खेत्त- अथ कि स क्षेत्रसमवतारः ? समोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--- क्षेत्रसमवतारः द्विविधः प्रज्ञप्तः, आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे तद्यथा आत्मसमयतारश्च तदुभयय। भरहे वासे आयसमोयारेणं समवतारश्च । भरतः वर्षः आत्मआयभावे समोयरई, तदुभयसमो- समवतारेण आत्मभावे समवतरति, यारेणं जंबुद्दीवे दोवे समोयरइ तदुभयसमवतारेण जम्बूद्वीपे द्वीपे आयभावे य । जंबुद्दीवे दीवे आय- समवतरति आत्मभावे च । जम्बूद्वीपे समोयारेणं आयभावे समोयरइ, द्वीपे आत्मसमवतारेण आत्मभावे तदुभयसमोयारेणं तिरियलोए समवतरति, तदुभयसमवतारेण तिर्यग - समोयरइ आयभावे य । तिरियलोए लोके समबतरति आत्मभावे च। आयसमोयारेणं आयभावे समोय- तिर्यग्लोक: आत्मसमवतारेण आत्मरइ, तदुभयसमोयारेणं लोए भावे समवतरति, तदुभयसमवतारेण समोयरइ आयभावे य । लोए लोके समवतरति आत्मभावे च । आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, लोक: आत्मसमवतारेण आत्ममावे तदुभयसमोयारेणं अलोए समोयरइ समवतरति, तदुभयसमवतारेण अलोके आयभावे य । से तं खेत्तसमो समवतरति आत्मभावे च । स एषयारे॥ क्षेत्रसमवतारः। अणुओगदाराई ६१५. वह क्षेत्र समवतार क्या है ? क्षेत्र समवतार के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार । भारत वर्ष आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा जम्बूद्वीप नामक द्वीप और आत्मभाव में समवतरित है। जम्बूद्वीप नामक द्वीप आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा तिर्यगलोक और आत्मभाव में समवतरित है। तिर्यगलोक आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा लोक और आत्मभाव में समवतरित लोक आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा अलोक और आत्मभाव में समवतरित है । वह क्षेत्र समवतार है। ६१६. से कि त कालसमोयारे ? अथ किं स कालसमवतारः ? कालसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं कालसमवतारः द्विविधः प्रज्ञप्तः, जहा आयसमोयारे य तदुभय- तद्यथा आत्मसमवतारश्च तदुभयसमोयारे य । समए आयसमोया- समवतारश्च । समयः आत्मसमवतारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभय- रेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमोयारेणं आवलियाए समोयरइ समवतारेण आवलिकायां समवतरति आयभावे य। आवलिया आय- आत्मभावे च । आवलिका आत्मसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, समवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमोयारेणं आणापाणए तदुभयसमवतारेण आनापाने समवसमोयरइ आयभावे य। एवं जाव तरति आत्मभाव च। एवं यावत् सागरोवमे आयसमोयारेणं आय- सागरोपम: आत्मसमवतारेण आत्मभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं भावे समवतरति, तदुभयसमवतारेण ओसप्पिणस्सप्पिणीसु समोयरइ अवसपिठ्युत्सपिण्योः समवतरति आयमावे य । ओसप्पिणस्स- आत्मभावे च । अवसपिण्युत्सपिण्यौ प्पिणीओ आयसमोयारेणं आय- आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं तरतः, तदुभयसमवतारेण पुद्गलपोग्गलपरियटे समोयरइ आयभावे परिवत्तें समवतरतः आत्मभावे च । य। पोग्गलपरियट्टे आयसमो- पुद्गलपरिवर्तः आत्मसमवतारेण यारेणं आयभावे समोयरइ, तदु- आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमवभयसमोयारेणं तीतद्धा अणागत- तारेण अतीताध्वा-अनागताध्व्योः द्धासु समोयरइ आयभावे य । समवतरति आत्मभावे च । अतीतातीतबा अणागतद्धाओ आयसमो- ध्वा-अनागताध्वानी आत्मसमवतारेण ६१६. वह काल समवतार क्या है ? काल समवतार के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार। समय आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा आवलिका और आत्मभाव में समवतरित है। आवलिका आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा आनापान और आत्मभाव में समवतरित है । इस प्रकार यावत् सागरोपम आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा अवसर्पिणीउत्सर्पिणी और आत्मभाव में समवतरित है। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वे तदुभयसमवतार के द्वारा पुद्गलपरिवर्त' और आत्मभाव में समवतरित हैं। पुद्गलपरिवर्त आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा अतीतकाल, अनागतकाल और आत्मभाव में समवतरित है। अतीतकाल और अनागतकाल आत्मसम www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational


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