Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 376
________________ बारहवां प्रकरण मूल पाठ सस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद उवक्कमाणुओगदारे वत्तव्वया-पदं उपक्रमानुयोगद्वारे वक्तव्यता- उपक्रम अनुयोगद्वार-वक्तव्यता-पद पदम् ६०५. से कि तं वत्तव्वया? वत्तव्वया अथ कि सा वक्तव्यता? वक्त- ६०५. वह वक्तव्यता क्या है ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-ससमय- व्यता त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा वक्तव्यता के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमय- स्वसमयवक्तव्यता परसमयवक्तव्यता स्वसमय वक्तव्यता, परसमय वक्तव्यता और परसमयवत्तव्वया ॥ स्वसमय-परसमयवक्तव्यता । स्वसमय परसमय वक्तव्यता। ६०६. से कि तं ससमयवत्तव्वया ? अथ कि सा स्वसमयवक्तव्यता? ६०६. वह स्वसमय वक्तव्यता क्या है ? ससमयवत्तब्वया-जत्थ णं ससमए स्वसमयवक्तव्यता यत्र स्वसमयः स्वसमय वक्तव्यता-जहां स्वसमय [अपने आघविज्जइ पण्णविज्जइ परू- आख्यायते प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते वय॑ते सिद्धान्त] का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, विज्जइ वंसिज्जइ निदंसिज्जइ निदर्श्यते उपदश्यते । सा एषा स्व- दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। उवदंसिज्जइ। से तं ससमय- समयवक्तव्यता । वह स्वसमय वक्तव्यता है। वत्तव्वया ॥ ६०७. से कि तं परसमयवत्तव्वया ? अथ कि सा परसमयवक्तव्यता? ६०७. वह परसमय वक्तव्यता क्या है ? परसमयवत्तव्वया-जत्थ णं पर- परसमयवक्तव्यता- यत्र परसमय: परसमय वक्तव्यता--- जहां परसमय [अन्यसमए आघविज्जइ पण्णविज्जइ आख्यायते प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते वय॑ते तीथिकों के सिद्धान्त] का आख्यान, प्रज्ञापन, परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ निवय॑ते उपदयते । सा एषा पर- प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया उवदंसिज्जइ । से तं परसमय- समयवक्तव्यता । जाता है । वह परसमय वक्तव्यता है। वत्तव्वया ॥ ६०८. से किं तं ससमय-परसमय- अथ किं सा स्वसमय-परसमय- ६०८. वह स्वसमय परसमय वक्तव्यता क्या है ? वत्तव्वया ? ससमय-परसमय- वक्तव्यता ? स्वसमय-परसमयवक्त स्वसमय परसमय वक्तव्यता-जहां स्वसमय वत्तव्वया-जत्थ ससमए परसमए व्यता -यत्र स्वसमयः परसमय: और परसमय दोनों का आख्यान, प्रज्ञापन, आधविज्जइ पण्णविज्जइ परू- आख्यायते प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते वय॑ते प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया विज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ निदर्श्यते उपदर्यते। सा एषा स्व- जाता है। वह स्वसमय परसमय वक्तव्यता है ? उवदंसिज्जइ। से तं ससमय- समय-परसमयवक्तव्यता। परसमयवत्तव्वया ॥ ६०९. इयाणि को नओ कं वत्तव्वयं इदानीं क: नयः का वक्तव्यता- ६०९. अब यह प्रस्तुत है कि किस नय को कौन इच्छइ ? तत्थ नेगम-ववहारा मिच्छति ? तत्र नैगम-व्यवहारौ सी वक्तव्यता इष्ट है ? तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति, तं जहा. त्रिविधां वक्तव्यतामिच्छतः, तद्यथा-- नगम और व्यवहार को त्रिविध वक्तव्यता ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं स्वसमयवक्तव्यतां परसमयवक्तव्यतां इष्ट है, जैसे-स्वसमय वक्तव्यता, परसमय ससमय-परसमयवत्तव्वयं । उज्जु- स्वसमय-परसमयवक्तव्यताम् । ऋज- वक्तव्यता और स्वसमय परसमय वक्तव्यता। सुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तं सूत्रः द्विविधां वक्तव्यतामिच्छति, ऋजुसूत्र को द्विविध वक्तव्यता इष्ट है, जैसे जहा-ससमयवत्तव्वयं परसमय- तद्यथा-स्वसमयवक्तव्यतां परसमय- -स्वसमय वक्तव्यता और परसमय वक्तवत्तव्वयं। तत्थ णं जासा ससमय- वक्तव्यताम् । तत्र या असौ स्वसमय- व्यता। उनमें जो स्वसमय वक्तव्यता है वह Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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