Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 340
________________ ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५५७ आगासपएसो जीवपएसो खंध- प्रदेशः आकाशप्रदेशः जीवप्रदेशः पएसो। एवं वयंतं ववहारं उज्जु- स्कन्धप्रदेशः। एवं वदन्तं व्यवहारम् सओ भणति-जं भणसि पंचविहो ऋजसूत्रः भणति -यद् भणसि पञ्चपएसो, तं न भवइ। विधः प्रदेशः, तन्न भवति । कम्हा? जइ ते पंचविहो पएसो कस्मात् ? यदि ते पञ्चविध: --एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो प्रदेशः एवं ते एकैक: प्रदेशः पञ्च--एवं ते पणवीसतिविहो पएसो विधः-एवं ते पञ्चविंशतिविधः भवइ, तं मा भणाहि-पंचविहो __ प्रदेशः भवति, तन्मा भण-पञ्चपएसो, भणाहि-भइयव्वो पएसो विधः प्रदेशः, भण-भाज्यः प्रदेशः --सिय धम्मपएसो सिय अधम्म- --स्याद् धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेशः पएसो सिय आगासपएसो सिय स्यादाकाशप्रदेशः स्याज्जीवप्रदेशः जीवपएसो सिय खंधपएसो। एवं स्यात् स्कन्धप्रदेशः। एवं वदन्तम् वयंत उज्जुसुयं संपइ सहो भणति ऋजुसूत्रं सम्प्रति शब्द: भणति-यद् -जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं भणसि भाज्यः प्रदेशः, तन्न भवति । न भवइ। कम्हा? जइते भइयव्वो पएसो, कस्मात् ? यदि ते भाज्यः प्रदेशः एवं ते--१. धम्मपएसो विसिय एवं ते -१. धर्मप्रदेशोऽपि-स्याद् धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेश: स्यावाकाशसिय आगासपएसो सिय जीवपएसो प्रदेश: स्याज्जीवप्रदेशः स्यात्स्कन्धसिय खंधपएसो, २. अधम्मपएसो प्रदेशः, २. अधर्मप्रदेशोऽपि स्याद् वि सिय धम्मपएसो सिय धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेशः स्यादाकाशअधम्मपएसो सिय आगासपएसो प्रदेशः स्याज्जीवप्रदेशः स्यात्स्कन्धसिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, प्रदेश , ३. आकाशप्रदेशोऽपि-स्याद् ३. आगासपएसो वि-सिय धम्म- धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेशः स्यादाकाशपएसो सिय अधम्मपएसो सिय प्रदेश: स्याज्जीवप्रदेशः स्यात् स्कन्धआगासपएसो सिय जीवपएसो प्रदेशः, ४. जीवप्रदेशोऽपि स्याद् सिय खंधपएसो, ४. जीवपएसो वि धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेशः, स्यादाकाश-सिय धम्मपएसो सिय अधम्म- प्रदेशः, स्याज्जीवप्रदेशः, स्यात् स्कन्धपएसो सिय आगासपएसो सिय प्रदेशः, ५. स्कन्धप्रदेशोऽपि-स्याद् जीवपएसो सिय खंधपएसो, ५. धर्मप्रदेशः स्यादधर्मप्रदेश स्यादाकाशखंधपएसो वि-सिय धम्मपएसो प्रदेशः स्याज्जीवप्रदेशः स्यात् स्कन्धसिय अधम्मपएसो सिय आगास- प्रदेशः । एवं ते अनवस्था भविष्यति, पएसो सिय जीवपएसो सिय खंध- तन्मा भण-भाज्य: प्रदेशः, भणपएसो। एवं ते अणवत्था भवि- धर्म: प्रदेशः स प्रदेशः धर्मः, अधर्म: स्सइ, तं मा भणाहि-भइयव्वो प्रदेश: स प्रदेश: अधर्मः, आकाशः पएसो, भणाहि-धम्मे पएसे से प्रदेशः स प्रदेश: आकाशः, जीवः पएसे धम्मे, अधम्मे पएसे से पएसे प्रदेशः स प्रदेशः नोजीवः, स्कन्धः अधम्मे, आगासे पएसे से पएसे प्रदेशः स प्रदेशः नोस्कन्धः । एवं आगासे, जीवे पएसे से पएसे नो- बदन्तं शब्दं सम्प्रति समभिरुढो भणति जीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे। -यद् भणसि धर्मः प्रदेश: स प्रदेश: प्रकार का प्रदेश" जैसे-धर्म का प्रदेश, अधर्म का प्रदेश, आकाश का प्रदेश, जीव का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश। व्यवहार नय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय कहता है-तुम जो पांच प्रकार का प्रदेश कहते हो वह उचित नहीं है। किसलिए? यदि तुम्हारे मन में पांच प्रकार का प्रदेश है तो इस प्रकार प्रत्येक प्रदेश के पांच प्रकार होने पर वह प्रदेश पच्चीस प्रकार का होता है। इसलिए मत कहो “पांच प्रकार का प्रदेश" यह कहो प्रदेश भाज्य [विकल्पनीय] है, स्यात् धर्म का प्रदेश है, स्यात् अधर्म का प्रदेश है, स्यात् आकाश का प्रदेश है, स्यात् जीव का प्रदेश है, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश है। ऋजुसूत्र के ऐसा कहने पर सम्प्रति शब्द नय कहता है तुम जो कहते हो कि प्रदेश भाज्य है वह उचित नहीं है। किसलिए? तुम्हारे मत में प्रदेश भाज्य है तो इस प्रकार १. धर्म का प्रदेश भी स्यात धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। २. अधर्म का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। ३. आकाश का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। ४. जीव का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। ५. स्कन्ध का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। इस प्रकार अनवस्था हो जाएगी, इसलिए मत कहो प्रदेश भाज्य है, यह कहो-जो Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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