Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 335
________________ २६८ अणुओगदाराई भहियाओ८. कप्पासियं ६. नाग- भद्रिका ८. कासिकं ९. नागसूक्ष्म सुहमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १०. कनकसप्ततिः ११. वैशिकं १२. १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. वैशेषिकं १३. बुद्धवचनं १४. कापिलं काविलं १५. लोगाययं १६. सट्रि- १५. लोकायतं १६. षष्टितन्त्रं १७. तंतं १७. माढरं १८. पुराणं १६. माठरं १८. पुराणं १९. व्याकरणं वागरणं २०. नाडगादि । अहवा- २०. नाटकादि । अथवा-द्विसप्ततिः बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया कला: चत्वारः वेदाः साङ्गोपाङ्गाः । संगोवंगा । से तं लोइए आगमे ॥ स एष लौकिक: आगमः। ८. कासिक, ९. नागसूक्ष्म, १०. कनकसप्तति [सांख्यकारिका], ११. वैशिक, १२. वैशेषिक, १३. बुद्धवचन, १४. कापिल, १५. लोकायत, १६. पष्टितन्त्र, १७. माठर, १८. पुराण, १९. व्याकरण और ३०. नाटक आदि । अथवा बहत्तर कलाएं और अंग-उपांग सहित चार वेद । वह लौकिक आगम है। ५४६. से कितं लोगृत्तरिए आगमे? अथ किस लोकोत्तरिकः ५४९. वह लोकोतरिक आगम क्या है? लोगुत्तरिए आगमे जणं इमं आगमः ? लोकोत्तरिकः आगमः यः लोकोतरिक आगम -समृत्पन्न ज्ञान, दर्शन अरहतेहि भगवंतेहि उप्पण्णनाण- अयम् अर्हद्भिः भगवद्भिः उत्पन्नज्ञान- के धारक, अतीत वर्तमान और भविष्य के दसणधरेहि तीय-पडप्पण्णमणागय- दशनधरः अतीत-प्रत्युत्पन्नमनागतजः ज्ञाता, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीन लोक के द्वारा जाणएहि सव्वणहि सव्वदरिसोहि सर्वज्ञः सर्वदशिभिः त्रैलोक्य'चहिय' अभिलषित, प्रशंसित और पूजित तीर्थंकर तेलोक्कचहिय-महिय-पूइएहि पणीयं : महितपूजितः प्रणीतं द्वादशाङ्गं गणि- भगवान् द्वारा प्रणीत द्वादशांग गणिपिटक दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा -- पिटकं, तद्यथा--१. आचारः २. लोकोत्तरिक आगम है। जैसे-१. आचार, सूत्रकृतं ३. स्थानं ४. समवायः ५. १. आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. व्याख्याप्रज्ञप्तिः ६. ज्ञातधर्मकथा ७. ४. समवाओ ५. वियाहपण्णत्ती ६. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपाउपासकदशाः ८. अन्तकृतदशा: ९. नायाधम्मकहाओ ७. उवासग सकदशा, ८ अन्तकृतदशा, ९. अनुत्तरोपअनुत्तरोपपातिकदशाः १०. प्रश्नदसाओ ८. अंतगडदसाओ ६.. पातिकदशा, १०.प्रश्नव्याकरण, ११. विपाकअणुत्तरोववाइयदसाओ १०. पण्हाव्याकरणानि ११. विपाकश्रुतं १२. श्रुत और १२. दृष्टिवाद। वह लोकोत्तरिक दृष्टिवादः। स एष लोकोत्तरिकः वागरणाई ११. विवागसुयं १२. आगम है। आगमः। दिट्ठिवाओ। से तं लोगुत्तरिए आगमे॥ ५५०. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं अथवा आगम: त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ५५०. अथवा आगम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जहा सुत्तागमे अत्थागमे तदु- तद्यथा सूत्रागमः अर्थागमः तदुभया- जैसे सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम । भयागमे । पमः। ५५१. अहवा आगमे तिविहे पण्णते, अथवा आगमः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ५५१. अथवा आगम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, तं जहा–अत्तागमे अणंतरागमे तद्यथा-आत्मागमः अनन्तरागमः जैसे-आत्मागम, अनन्तरागम और परंपरागमे । तित्थगराणं अस्थस्स परम्परागमः। तीर्थकराणाम् अर्थस्य परम्परागम । तीर्थंकरों के अर्थ आत्मागम है, अत्तागमे । गणहराणं सुत्तस्स आत्मागमः। गणधराणां सूत्रस्य गणधरों के सूत्र आत्मागम है और अर्थ अत्तागमे, अत्थस्स अणंतरागमे । आत्मागमः, अर्थस्य अनन्तरागमः । अनन्तरागम है। गणधर शिष्यों के सूत्र गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे, गणधरशिष्याणां सूत्रस्य अनन्तरागमः अनन्तरागम है और अर्थ परम्परागम है। अत्थस्स परंपरागमे। तेण परं अर्थस्य परम्परागमः । ततः परं सूत्रस्य उसके बाद सूत्र और अर्थ दोनों ही आत्मागम सुत्तस्स वि अत्थस्स वि नो अत्ता- अपि अर्थस्य अपि नो आत्मागमः, नो नहीं है, अनन्तरागम नहीं है, परम्परागम है । गमे, नो अणंतरागमे, परंपरागमे। अनन्तरागमः, परम्परागमः । स एष वह लोकोत्तरिक आगम है । वह आगम है। से तं लोगुत्तरिए आगमे । से तं लोकोत्तरिकः आगमः। स एष वह ज्ञानगुण प्रमाण है। आगमे । से तं नाणगुणप्पमाणे॥ आगमः । तदेतद् ज्ञानगुणप्रमाणम् । ५५२. से कि तं दंसणगुणप्पमाणे? अथ किं तद् दर्शनगुणप्रमाणम् ? दसणगुणप्पमाणे चउविहे पण्णत्ते, दर्शनगुणप्रमाणं चतुर्विधं प्रज्ञप्त, ५५२. वह दर्शनगुण प्रमाण क्या है ? दर्शनगुण प्रमाण के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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