________________ [नन्दीसूत्र डाला / गर्म होने के कारण लाख की गोलो शलाका के अग्रभाग में चिपक गई और सुनार ने उसे सावधानी से बाहर निकाल लिया। यह उदाहरण स्वर्णकार को प्रोत्पत्तिकी बुद्धि का परिचायक है। (12) खंभ-एक राजा को अत्यन्त बुद्धिमान मंत्री की आवश्यकता थी। बुद्धिमत्ता की परीक्षा करने के लिए उसने एक विस्तीर्ण और गहरे तालाब में एक ऊँचा खंभा गड़वा दिया। तत्पश्चात् घोषणा करवादी कि--"जो व्यक्ति पानी में उतरे विना किनारे पर रहकर ही इस खंभे को रस्सी से बाँध देगा उसे एक लाख रुपया इनाम में दिया जाएगा।" यह घोषणा सुनकर लोग टुकुर-टुकुर एक दूसरे की ओर देखने लगे। किसी से यह कार्य नहीं हो सका / किन्तु अाखिर एक व्यक्ति वहाँ आया जिसने इस कार्य को सम्पन्न करने का बीड़ा उठाया। उस व्यक्ति ने तालाब के किनारे पर एक जगह मजबूत खूटी माड़ी और उससे रस्सी का एक सिरा बाँध दिया। उसके बाद वह रस्सी के दूसरे सिरे को पकड़कर तालाब के चारों ओर घूम गया। ऐसा करने पर खंभा बोच में बंध गया। राजकर्मचारियों ने यह समाचार राजा को दिया। राजा उस व्यक्ति की प्रौत्पत्तिकी बुद्धि से बहुत प्रसन्न हुआ और एक लाख रुपया देने के साथ ही उसे अपना मंत्री भी बना लिया। (13) क्षुल्लक---बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक संन्यासिनी रहती थी। उसे अपने प्राचार-विचार पर बड़ा गर्व था / एक बार वह राजसभा में जा पहुँची और बोली"महाराज, इस नगर में कोई ऐसा नही है जो मुझे परास्त कर सके।" संन्यासिनी की दर्प भरी बात सुनकर राजा ने उसी समय नगर में घोषणा करवादी कि जो कोई इस संन्यासिनी को परास्त करेगा उसे राज्य की ओर से सम्मानित किया जाएगा / घोषणा सुनकर और तो कोई नगरवासी नहीं पाया, किन्तु एक क्षुल्लक सभा में पाया और बोला-'मैं इसे परास्त कर सकता हूँ।" राजा ने आज्ञा दे दी। संन्यासिनी हंस पड़ी और बोली-"इस मुडित से मेरा क्या मुकाबला?" क्षुल्लक गंभीर था वह संन्यासिनी की धूर्तता को समझ गया और उसके साथ उसी तरह पेश आने का निश्चय करके बोला--"जैसा मैं करूँ अगर वैसा ही तुम नहीं करोगी तो परास्त मानी जामोगी।" यह कहकर उसने समीप ही बैठे मंत्री का हाथ पकड़कर उसे सिंहासन से उतार कर नीचे खड़ा कर दिया और अपना परिधान उतार कर उसे अोढ़ा दिया / तत्पश्चात् संन्यासिनी से भी एसा हो करने के लिए कहा। किन्तु संन्यासिन। प्रावरण रहित नहीं हो सकती थी, अतः लज्जित व पराजित हाकर वहाँ से चल दी। क्षुल्लक की औत्पत्तिकी बुद्धि का यह उदाहरण है। (14) मार्ग--एक पुरुष अपनी पत्नी के साथ रथ में बैठकर किसी अन्य ग्राम को जा रहा था / मार्ग में एक जगह रथ को रुकवा कर स्त्री लघुशंका-निवारण के लिये किसी झाड़ी की प्रोट में चली गई। इधर पुरुष जहाँ था वहीं पर एक वृक्ष पर किसी व्यन्तरी का निवास था / वह पूरुष के रूप पर मोहित होकर उसको स्त्री का रूप बता आई और आकर रथ में बैठ गई। रथ चल दिया किन्तु उसी समय भाडियों के दसरी ओर गई हुई स्त्री आती दिखाई दी। बैठी हुई व्यन्तरी बोली--"अरे, वह सामने से कोई व्यन्तरी मेरा रूप धारण कर पाती हुई दिखाई दे रही है / आप रथ को द्रुत गति से ले चलिये।" पुरुष ने रथ को गति तेज करदी किन्तु तब तक स्त्री पास आ गई थी और वह रथ के साथसाथ दौड़ती हुई रो-रोकर कह रही थी—“रथ रोको स्वामी ! आपके पास जो बैठी है वह तो कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org