________________ 21.] [ नन्दीसूत्र . (7) परिणिट्ठा-सातवें श्रवण में शिष्य श्रु तपरायण होकर गुरुवत् सैद्धान्तिक विषय का प्रतिपादन करने में समर्थ हो जाता है / इसलिये प्रत्येक जिज्ञासु को पागम-शास्त्र का अध्ययन विधिपूर्वक ही करना चाहिए। सूत्रार्थ व्याख्यान-विधि प्राचार्य, उपाध्याय या बहुश्रुत गुरु के लिए भी आवश्यक है कि वह शिष्य को सर्वप्रथम सूत्र का शुद्ध उच्चारण और अर्थ सिखाए / तत्पश्चात् उस आगम के शब्दों की सूत्रस्पर्शी नियुक्ति बताए / तीसरी बार पुनः उसी सूत्र को वृत्ति-भाष्य, उत्सर्ग-अपवाद, और निश्चय-व्यवहार, इन सबका आशय नय, निक्षेप, प्रमाण और अनुयोगद्वार आदि विधि से व्याख्या सहित पढ़ाए। इस क्रम से अध्यापन करने पर गुरु शिष्य को श्रुतपारंगत बना सकता है / इस प्रकार नन्दी सूत्र की समाप्ति के साथ अङ्गप्रविष्ट श्रु तज्ञान और परोक्ष का विषयवर्णन सम्पूर्ण हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org