Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 168
________________ मतिज्ञान] [135 जाने पर भी अगर उपयोग उस विषय में लगा रहे तो उसे अवाय नहीं वरन अविच्युति धारणा कहते हैं। अविच्युति धारणा से वासना उत्पन्न होती है। वासना जितनी दृढ होगी, निमित्त मिलने पर वह स्मृति को अधिकाधिक उद्बोधित करने में कारण बनेगी। भाष्यकार ने उक्त चारों का कालमान निम्न प्रकार से बताया है---- "प्रत्थोग्गहो जहन्नं समयो, सेसोग्गहादप्रो वीसु। अन्तोमुत्तमेगन्तु, वासणा धारणं मोत्तु॥" - इस गाथा का भाव पूर्व में आ चुका है / व्यंजनावग्रहः प्रतिबोधक का दृष्टान्त ६२-एवं अट्ठावीसइविहस्स प्राभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि, पडिबोहगदिढतेण मल्लगदिट्टतेण य / से किं तं पडिबोहगदिट्ठ'तेणं ? पडिबोहगदिट्टतेणं, से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा-'अमुगा! प्रमुगत्ति !!' तत्थ चोयगे पन्नवर्ग एवं क्यासी-कि एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? जाव दससमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गणमागच्छंति ? प्रसंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला महणमागच्छंति ? एवं वदंतं चोयगं पण्णवए एवं वयासो-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति नो, संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से तं पडिबोहगदिट्टतेणं / ६२-चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध आभिनिबोधिक-मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूंगा। प्रतिबोधक के उदाहरण से व्यंजन-अवग्रह का निरूपण किस प्रकार है ? प्रतिबोधक का दृष्टान्त इस प्रकार है--कोई व्यक्ति किसी सुप्त पुरुष को-“हे अमुक ! हे अमुक !!" इस प्रकार कह कर जगाए। शिष्य ने तब पुनः प्रश्न किया-"भगवन् ! क्या ऐसा संबोधन करने पर उस पुरुष के कानों में एक समय में प्रवेश किए हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं या दो समय में अथवा दस समयों में, संख्यात समयों में या असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ?" ऐसा पूछने पर प्ररूपक—गुरु ने उत्तर दिया"एक समय में प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते, न दो समय अथवा दस समय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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