Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 220
________________ श्रु तज्ञान] [187 पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया, जिण-पन्नत्ता भावा प्राविज्जति पन्नविज्जंति, परू विज्जति सिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति / से एवं प्राया, एवं नाया, एवं बिन्नाया एवं चरण-करणपरूबणा प्रायविज्जइ। से तं पण्हावागरणाई।।। सूत्र 55 / / ६२–प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है-उसमें क्या प्रतिपादन किया गया है ? उत्तर–प्रश्नव्याकरण सूत्र में एक सौ आठ प्रश्न ऐसे हैं जो विद्या या मंत्र विधि से जाप द्वारा सिद्ध किए गये हों और पूछने पर शुभाशुभ कहें / एक सौ आठ अप्रश्न हैं, अर्थात् बिना पूछे हो शुभाशुभ वताएँ और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्न हैं जो पूछे जाने पर और न पूछे जाने पर भी स्वयं शुभाशुभ का कथन करें / जैसे-अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा प्रादर्शप्रश्न / इनके अतिरिक्त अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन किये गए हैं / नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ हुए मुनियों के दिव्य संवाद भी कहे गए हैं। प्रश्नव्याकरण की परिमित वाचनाएँ हैं / संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ और संख्यात संग्रहणियाँ तथा प्रतिपत्तियाँ हैं / प्रश्नव्याकरणश्र त अंगों में दसवां अंग है। इनमें एक श्र तस्कंध, पैंतालीस अध्ययन, पैंतालीस उद्देशनकाल और पैंतालीस समुद्देशनकाल हैं। पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थगम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं / शाश्वत-कृत-निबद्धनिकाचित, जिन प्रतिपादित भाव कहे गये हैं, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन तथा उपदर्शन द्वारा स्पष्ट किए गये हैं। प्रश्नव्याकरण का पाठक तदात्मकरूप एवं ज्ञाता, विज्ञाता हो जाता है / इस प्रकार उक्त अंग में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। यह प्रश्नव्याकरण का विवरण है। विवेचन-प्रश्नव्याकरण में प्रश्नोत्तर रूप से पदार्थों का वर्णन किया गया है। प्रायः सूत्रों के नामों से ही अनुमान हो जाता है कि इनमें किन-किन विषयों का वर्णन है। इस सूत्र का नाम भी प्रश्न और व्याकरण यानी उत्तर, इन दोनों भागों को एक करके रखा गया है। इसमें एक सौ आठ प्रश्न ऐसे हैं जो विद्या या मंत्र का पहले विधिपूर्वक जप करने पर फिर किसी के पूछने पर शुभाशुभ उत्तर कहते हैं। एक सौ पाठ ऐसे भी हैं जो विद्या या मंत्र-विधि से सिद्ध किए जाने पर बिना पूछे ही शुभाशुभ कह देते हैं। साथ ही और एक सौ पाठ प्रश्न ऐसे हैं जो सिद्ध किए जाने के पश्चात् पूछने पर या न पूछने पर भी शुभाशुभ कहते हैं। सूत्र में अंगुष्ठ प्रश्न, बाहुप्रश्न तथा प्रादर्शप्रश्न इत्यादि बड़े विचित्र प्रकार के प्रश्नों और अतिशायी विद्याओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त मुनियों का नागकुमार और सुपर्णकुमार देवों के साथ जो दिव्य संवाद हमा. उसका भी वर्णन है। अंगष्ठ आदि जो प्रश्न कथन किये गए हैं उनका तात्पर्य यह है कि अंगुष्ठ में देव का प्रावेश होने से उत्तर प्राप्त करने वाले को यह मालूम होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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