Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 221
________________ 188] [नन्दीसूत्र कि मेरे प्रश्न का उत्तर अमुक मुनि के अंगुष्ठ द्वारा दिया जा रहा है / स्पष्ट है कि इस सूत्र को मंत्रों और विद्याओं में अद्वितीय माना गया है। समवायाङ्ग सूत्र में भी प्रश्नव्याकरण सूत्र का परिचय दिया गया है और यह सिद्ध है कि यह सूत्र मन्त्रों और विद्याओं की दृष्टि से अद्वितीय है, किन्तु वर्तमान में इसके अतिशय विद्यावाले अध्ययन उपलब्ध नहीं होते / केवल पाँच पाश्रव तथा पाँच संवररूप दस अध्ययन ही विद्यमान हैं। वर्तमान काल के प्रश्नव्याकरण में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले में क्रमशः हिंसा, झूठ, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का विस्तृत वर्णन है तथा दूसरे श्रु तस्कन्ध में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का सुन्दर विवरण दिया गया है / इनकी आराधना करने से अनेक प्रकार की लब्धियों की प्राप्ति का उल्लेख भी है। प्रश्नव्याकरण के विषय में दिगम्बर मान्यता दिगम्बर मान्यतानुसार इस सूत्र में लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, जय-पराजय, हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का प्ररूपण किया गया है / इनके सिवाय इसमें तत्त्वों का निरूपण करनेवाली चार धर्मकथाओं का भी विस्तृत वर्णन है, जिन्हें क्रमश: नीचे बताया जा रहा है। (1) आक्षेपणी कथा--जो नाना प्रकार की एकान्त दृष्टियों को निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छह द्रव्य और नौ पदार्थों का प्ररूपण करती है उसे आक्षेपणी कथा कहते हैं। (2) विक्षेपणी कथा-जिसमें पहले पर-समय के द्वारा स्व-समय में दोष बताए जाते हैं, तत्पश्चात् पर-समय की आधारभूत अनेक प्रकार की एकान्त दृष्टियों का शोधन करके स्व-समय की स्थापना की जाती है तथा छह द्रव्य और नौ पदार्थों का प्ररूपण किया जाता है वह विक्षेपणी कथा कही जाती है। (3) संवेगनी कथा--जिसमें पुण्य के फल का वर्णन हो. जैसे तीर्थकर, गणधर, चक्रवती, बलदेव, वासुदेव, विद्याधर और देवों की ऋद्धियाँ पूण्य के फल हैं। इस प्रकार विस्तार से धर्म के फल का वर्णन करने वाली संवेगनी कथा है। (4) निवेदनी कथा--पापों के परिणाम स्वरूप नरक, तिर्यंच आदि में जन्म-मरण और व्याधि, वेदना, दारिद्रय आदि की प्राप्ति के विषय में बताने वाली तथा वैराग्य को उत्पन्न करने वाली कथा निवेदनी कहलाती है। उक्त चारों कथाओं का प्रतिपादन करते हुए यह भी कहा गया है कि जो जिन-शासन में अनुरक्त हो, पूण्य-पाप को समझता हो, स्व-समय के रहस्य को जानता हो तथा तप-शील से युक्त और भोगों से विरक्त हो, उसे ही विक्षेपणी कथा कहनी चाहिए, क्योंकि स्व-समय को न समझने वाले वक्ता के द्वारा पर-समय का प्रतिपादन करने वाली कथाओं को सुनकर श्रोता व्याकुलचित्त होकर मिथ्यात्व को स्वीकार कर सकते हैं। इस प्रकार प्रश्नव्याकरण का विषय है / शेष वर्णन पूर्ववत् है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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