Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 226
________________ श्रुतज्ञान] [193 विवेचन--उक्त सूत्र में मनुष्यश्रेणिका परिकर्म का वर्णन किया है। अनुमान किया जाता है कि इसमें भव्य-अभव्य, परित्तसंसारी, अनन्तसंसारी, चरमशरीरी और अचरमशरीरी, चारों गतियों से पानेवाली मनुष्य श्रेणी, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि, अाराधक-विराधक, स्त्रीपुरुप, नपुसक, गर्भज, सम्मूछिम, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, संयत, असंयत, संयतासंयत, मनुष्यश्रेणिका, उपशमणि तथा क्षपक श्रेणिरूप मनुष्यश्रेणिका का वर्णन होगा। (3) पृष्टश्रेणिका परिकर्म १००–से कि तं पुट्ठसे णिमापरिकम्मे ? पुट्ठसेणिमापरिकम्मे, इक्कारसविहे पण्णत्ते तं जहा (1) पाढोप्रागा (मा) सपयाई, (2) के उभूयं (3) रासिबद्ध, (4) एगगुणं, (5) दुगुणं, (6) तिगुणं, (7) केउभूयं, (8) पडिग्गहो, (6) संसारपडिग्गहो, (10) नंदावत्तं, (11) पुट्ठावत्तं / से तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे। १००-पृष्टश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? पृष्टश्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, यथा-(१) पृथगाकाशपद, (2) केतुभूत, (3) राशिबद्ध (4) एकगण, (5) द्विगण, (6) त्रिगण, (7) केतृभूत, (8) प्रतिग्रह, (9) संसारप्रतिग्रह, (10) नन्दावर्त, (11) पृष्टावर्त / यह पृष्टभेणिका परिकर्म श्रुत है। विवेचन--सूत्र में पृष्टश्रेणिका परिकर्म के ग्यारह विभाग बताए गए हैं। प्राकृत में स्पृष्ट और पृष्ट, दोनों से 'पुट्ठ' शब्द बनता है। संभवतः इस परिकर्म में लौकिक और लोकोत्तर प्रश्न तथा उनके उत्तर होंगे / सभी प्रकार के प्रश्नों का इन ग्यारह प्रकारों में समावेश हो सकता है / / स्पृष्ट का दूसरा अर्थ होता है-स्पर्श किया हुआ / सिद्ध एक दूसरे से स्पृष्ट होते हैं, निगोद के शरीर में भी अनन्त जीव एक-दूसरे से स्पृष्ट रहते हैं। धर्म, अधर्म, एवं लोकाकाश के प्रदेश अनादिकाल से परस्पर स्पृष्ट हैं। पृष्टश्रेणिकापरिकर्म में इन सबका वर्णन हो, ऐसा संभव है। (4) अवगाढश्रेणिका परिकर्म १०१-से कि तं प्रोगाढसे णिग्रापरिकम्मे ? प्रोगाढसेणिग्रापरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा-(१) पाढोआगा(मा) सपयाई, (2) केउभूअं (3) रासिबद्ध, (4) एगगुणं (5) दुगणं, (6) तिगुणं, (7) के उभूअं, (8) पडिग्गहो (E) संसार-पडिग्गहो, (10) नंदावत्तं, (11) प्रोगाढावत्तं / से तं प्रोगाढसेणिया परिकम्मे / १०१-प्रश्न--अवगाढश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? उत्तर-अवगाढश्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है-(१) पृथगाकाशपद (2) केतुभूत (3) राशिबद्ध, (4) एकगुण (5) द्विगुण, (6) त्रिगुण (7) केतुभूत, (8) प्रतिग्रह, (9) संसारप्रतिग्रह, (10) नन्दावर्त (11) अवगाढावर्त / यह अवगाढश्रेणिका परिकर्म है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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