Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 205
________________ 172) [नन्दीसूत्र आचारांग अर्धमागधी भाषा को समझने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है / अधिकांश रचना गद्य में है पर बीच-बीच में कहीं-कहीं पद्य भी आते हैं / सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है किन्तु काल-दोष से उसका पाठ व्यवच्छिन्न हो गया है। उपधान नामक नवें अध्ययन में भगवान् महावीर की तपस्या का बड़ा ही मार्मिक विवरण है। उनके लाठ, वज्र-भूमि और शुभ्रभूमि में विहारों के बीच घोर उपसर्ग सहन करने का उल्लेख है। पहले श्रु तस्कन्ध के नौ अध्ययन तथा चवालीस उद्देशक हैं, दूसरे शु तस्कन्ध में मुनि के लिये निर्दोष भिक्षा का, शय्या-संस्तरण-विहार-चातुर्मासभाषा-वस्त्र-पात्रादि उपकरणों का वर्णन है। महाव्रत और उससे संबंधित पच्चीस भावनामों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन है / (2) श्री सूत्रकृताङ्ग ८४-से कि तं सूअगडे ? सूअगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोपालोए सूइज्जइ जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जंति, ससमए सूइज्जइ, परसमए:सूइज्ज इ. ससमय-परसमए सूइज्जइ / सप्रगडे णं असीअस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीईए अकिरियावाईणं, सत्तट्रोए अण्णाणिप्रवाईणं, बत्तीसाए वेणइप्रवाईणं, तिण्ह तेसट्टाणं पासंडिअसयाणं बूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ / सअगडे परिता वायणा, संखिज्जा अण-योगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीपो, संखिज्जानो पडिवत्तीयो / से णं अंगट्टयाए बिइए अंगे, दो सुअखंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्दे सणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि पयम्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, प्रणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्राविज्जति, पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जंति, निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति / से एवं प्राया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा प्राधविज्जइ / से तं सूयगडे। // सूत्र 47 / / ८४-प्रश्न—सूत्रकृताङ्गश्रु त में किस विषय का वर्णन है ? उत्तर--सूत्रकृतांग में षद्रव्यात्मक लोक सूचित किया जाता है, केवल आकाश द्रव्यमय अलोक सूचित किया जाता है / लोकालोक दोनों सूचित किये जाते हैं। इसी प्रकार जीव, अजीव और जीवाजीव की सूचना दी जाती है / स्वमत, परमत और स्व-परमत की सूचना दी जाती है। सूत्रकृतांग में एक सौ अस्सी क्रियावादियों के, चौरासी प्रक्रियावादियों के, सड़सठ अज्ञानवादियों और बत्तीस विनयवादियों के, इस प्रकार तीन सौ त्रेसठ पाखंडियों का निराकरण करके स्व सिद्धांत की स्थापना की जाती है। सूत्रकृताङ्ग में परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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