Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ श्र तज्ञान [ 172 __ यह अङ्ग अर्थ की दृष्टि से दूसरा है। इसमें दो श्र तस्कंध और तेईस अध्ययन हैं / तेतीस उद्देशनकाल और तेतीस समुद्देशनकाल हैं। सूत्रकृतांग का पद-परिणाम छत्तीस हज़ार है। इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं। धर्मास्तिकाय आदि शाश्वत, प्रयत्नजन्य, या प्रकृतिजन्य, निबद्ध एवं हेतु आदि द्वारा सिद्ध किए गए जिन-प्रणीत भाव कहे जाते हैं तथा इनका प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। सूत्रकृतांग का अध्ययन करने वाला तद्र प अर्थात् सूत्रगत विषयों में तल्लीन होने से तदाकार आत्मा, ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार से इस सूत्र में चरण-करण की प्ररूपणा कही जाती है। यह सूत्रकृतांग का वर्णन है / विवेचन–'सूच' सूचायां धातु से 'सूत्रकृत' शब्द बनता है। इसका अर्थ है, जो समस्त जीवादि पदार्थों का बोध कराता है वह सूचकृत है। अथवा सूचनात् सूत्रम्, जो मोहनिद्रा में सुप्त या पथभ्रष्ट प्राणियों को जगाकर सन्मार्ग बताए, वह सूत्रकृत कहलाता है / या, जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों को सूत्र यानी धागे में पिरोकर एकत्रित किया जाता है, उसी प्रकार जिसके द्वारा नाना विषयों को तथा मत-मतान्तरों की मान्यताओं को क्रमबद्ध किया जाता है, उसे भी सूत्रकृत कहते हैं। सूत्रकृतांग में विभिन्न विचारकों की मान्यताओं का दिग्दर्शन कराया गया है / सूत्रकृत में लोक, अलोक तथा लोकालोक के स्वरूप का भी प्रतिपादन किया है। शुद्ध जीव परमात्मा है, शुद्ध अजीव जड़ पदार्थ है और संसारी जीव, शरीर से युक्त होने के कारण जीवाजीव कहलाते हैं। कोई द्रव्य न अपना स्वरूप छोड़ता है और न ही दूसरे के स्वरूप को अपनाता है / यही द्रव्य का द्रव्यत्व है। उक्त सूत्र में मुख्यतया स्वदर्शन, अन्यदर्शन तथा स्व-परदर्शनों का विवेचन किया गया है / अन्य दर्शनों का वर्गीकरण क्रियावादी, अक्रियावादी अज्ञानवादी तथा विनयवादी, इस प्रकार चार मतों में होता है / इनका विवरण संक्षिप्त रूप में निम्न प्रकार से है-- (1) क्रियावादी-क्रियावादी नौ तत्त्वों को कथंचित् विपरीत समझते हैं तथा धर्म के प्रांतरिक स्वरूप की यथार्थता को न जानने के कारण प्राय: बाह्य क्रियाकाण्ड के पक्षपाती रहते हैं / अतः क्रियावादी कहलाते हैं / वैसे इन्हें प्राय: आस्तिक ही माना जाता है। (2) अक्रियावादी–अक्रियावादी नव तत्त्व या चारित्ररूप क्रिया का निषेध करते हैं। इनकी गणना प्रायः नास्तिकों में होती है। स्थानाङ्गसूत्र के आठवें स्थान में आठ प्रकार के प्रक्रियावादियों का उल्लेख है / वे क्रमश: इस प्रकार हैं-- (1) एकवादी-कुछ विचारकों का मत है कि विश्व में जड़ पदार्थ के अलावा अन्य कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी है मात्र जड़ ही है। प्रात्मा, परमात्मा या धर्म नाम की कोई वस्तु है ही नहीं। शब्दाद्वैतवादी एकमात्र शब्द की ही सत्ता मानते हैं / ब्रह्माद्वैतवादियों ने एकमात्र ब्रह्म के सिवाय अन्य समस्त द्रव्यों का निषेध किया है। उनका कथन है-"एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म।" या एक एव हि भूतात्मा, भूते भूते व्यवस्थितः / एकधा बहुधा चैव, दृश्यते जलचन्द्रवत् // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253