Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 213
________________ 180] [नन्दीसूत्र विवेचन-~-इस सूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इसमें इकतालीस शतक, दस हजार उद्देशक, छत्तीस हजार प्रश्न तथा उन सबके उत्तर हैं। प्रारम्भ के आठों शतक तथा बारहवाँ, चौदहवाँ, अठारहवाँ और बीसवाँ, ये सभी शतक दस-दस उद्देशकों में विभाजित हैं / पन्द्रहवें शतक में उद्देशक भेद नहीं है। सूत्रों की संख्या आठ सौ सड़सठ है / प्रश्नोत्तर के रूप में विषयों का विवेचन किया गया है। इस अङ्गसूत्र में सभी प्रश्न गौतम स्वामी के किए हुए नहीं हैं अपितु इन्द्रों के, देवताओं के, मुनियों के, संन्यासियों के तथा श्रावकादिकों के भी हैं और उत्तर भी केवल भगवान महावीर के दिये हुए नहीं, वरन गौतम आदि मुनिवरों के और कहीं-कहीं श्रावकों के दिए हुए भी हैं / यह सूत्र अन्य सूत्रों से विशाल है। इसमें पण्णवणा जीवाभिगम, उववाई, राजप्रश्नीय, आवश्यक, नन्दी तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि सूत्रों के नामोल्लेख व इनके उद्धरण भी दिये गए हैं। सैद्धान्तिक, ऐतिहासिक, द्रव्यानुयोग तथा चरण-करणानुयोग की भी इसमें विस्तृत व्याख्या है। बहुत से विषय ऐसे भी हैं जिन्हें न समझ पाने से जिज्ञासु को भ्रम या सन्देह हो सकता है अत: उन्हें सूत्रों के विशेषज्ञों से समझना चाहिये। (6) श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र ८८-से कि तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई, उज्जाणाई चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इझिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पवज्जात्रा, परिमाया, सूधपारसंगहा, तवावहाणाई, सलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइ, पाओवगमणाइ देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाइओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियानो अप्राविति / दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्म-कहाए पंच-पंच प्रक्खाइप्रासयाई, एगमेगाए अक्खाइपाए पंच-पंचउवक्खाइप्रासयाई, एगमेगाए उवक्खाइमाए पंच-पंच अक्खाइया-उवक्खाइपासयाई, एवमेव सपुवावरेणं अद्धट्ठामो कहाणगकोडीओ हवंति त्ति समक्खायं / नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा प्रणयोगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाम्रो निजुत्तीओ, संखिज्जाप्रो संगहणीप्रो, संखेज्जाम्रो पडिवत्तीओ। से गं अंगदुयाए छ8 अंगे, दो सुप्रखंधा, एगुणवीसं प्रज्झयणा, एगुणवीसं उद्देसणकाला, एगुणवीसं समुद्दे सणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया, जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पन्नविज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति। से एवं पाया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणा प्राधविज्जइ / से तं नायाधम्मकहाओ। / / सूत्र 51 / / ___८८--शिष्य ने पूछा-भगवन् ! ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र किस प्रकार है-उसमें क्या वर्णन है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253