Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 180
________________ श्रुतज्ञान] [147 ७३-अक्षरश्रुत कितने प्रकार का है। अक्षरश्रुत तीन प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे—(१) संज्ञा-प्रक्षर (2) व्यञ्जन-अक्षर और (3) लब्धि-अक्षर / (1) संज्ञा-अक्षर किस तरह का है ? अक्षर का संस्थान या आकृति आदि, जो विभिन्न लिपियों में लिखे जाते हैं, वे संज्ञा-अक्षर कहलाते हैं। (2) व्यञ्जन-अक्षर क्या है ? उच्चारण किए जाने वाले अक्षर व्यंजन-अक्षर कहे जाते हैं। (3) लब्धि-अक्षर क्या है ? अक्षर-लब्धि वाले जीव को लब्धि-अक्षर उत्पन्न होता है अर्थात् भावरूप श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। जैसे-श्रोत्रेन्द्रियलब्धि-अक्षर, चक्षुरिन्द्रियलब्धि-अक्षर, घ्राणेन्द्रियलब्धि-अक्षर, रसनेन्द्रियलब्धि-अक्षर, स्पर्शनेन्द्रियलब्धि-अक्षर, नोइन्द्रियलब्धि-अक्षर / यह लब्धिअक्षरश्रुत है / इस प्रकार अक्षरश्रुत का वर्णन है / अनक्षरश्रुत ७४-से कि तं प्रणवखर-सुअं? अणक्खर-सुअं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा--- (1) ऊससियं नीससियं, निच्छूढं खासियं च छीयं च / निस्सिघिय-मणुसारं, अणक्खरं छेलिमाईअं॥ से तं अणक्खरसुअं। / / सूत्र 36 // ७४--अनक्षरश्र त कितने प्रकार का है ? अनक्षरश्र त अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे, ऊपर को श्वास लेना, नीचे श्वास लेना, थूकना, खांसना, छींकना, निःसिंघना (नाक साफ करना) तथा अन्य अनुस्वार युक्त चेष्टा करना आदि / यह सभी अनक्षरश्रत है। विवेचन-अक्षरश्रुतः-सूत्र में अक्षरश्र त और अनक्षरथ त का वर्णन किया गया है। क्षर 'संचलने' धातु से अक्षर शब्द बनता है। यथा-न क्षरति-न चलति-इत्यक्षरम्-अर्थात् अक्षर का अर्थ ज्ञान है, ज्ञान जीव का स्वभाव है / द्रव्य अपने स्वभाव में स्थिर रहता है / जीव भी एक द्रव्य है, उसमें जो स्वभाव-गुण हैं वे अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाये जाते और अन्य द्रव्यों में जो गुण-स्वभाव हैं वे जीव में नहीं पाये जाते / आत्मा से ज्ञान कभी नहीं हटता, सुषुप्ति अवस्था में भी जीव का स्वभाव होने के कारण ज्ञान बना रहता है। यहाँ भावाक्षर का कारण होने से लिखित एवं उच्चारित 'अकार' आदि को भी उपचार से 'अक्षर' कहा गया है / अक्षरश्रु त, भाव त का कारण है / भावथ त को लब्धि-अक्षर भी कहते हैं। संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर ये दोनों द्रव्यश्रु त में अन्तनिहित हैं। इसीलिए अक्षरथ त के तीन भेद किये गये हैं, संज्ञाक्षर, व्यंजनाक्षर तथा लब्ध्यक्षर / (1) संज्ञाक्षर-अक्षर की प्राकृति, बनावट या संस्थान को, संज्ञाक्षर कहते हैं / उदाहरण स्वरूप-अ, आ, इ, ई, अथवा A. B. C. D. आदि लिपियाँ / अन्य भाषाओं की भी जितनी लिपियाँ हैं, उनके अक्षर भी संज्ञाक्षर समझना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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