Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्ययन ७ है कि-कषाय रहित श्रवण ही निरवद्यभाषाभाषी हो सकता है । 'अणिस्सिए' पद यह सूचित करता है कि बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त मुनि ही विशुद्ध भाषा द्वारा उभय लोक की आराधना करने की योग्यतावान् है ॥
श्री सुधर्मा स्वामी जम्बस्वामीसे कहते हैं।- हे जम्बू ! भगवान् महावीरने जैसा कहा है वैसा ही मैं तुमसे कहता हूं ॥५७॥
श्री दशवकालिक सूत्र की आचारमणिमंजूषा नामकी व्याख्या के हिन्दी भाषानुवाद का सातवा अध्ययन समाप्त हुआ ॥७॥
॥श्रीरस्तु॥ निश्वधमाषाभाषी लाश छ. अणिस्सिए ५४ मेम सूथित ४३ छे , माय भने આત્યંતર પરિગ્રહથી મુક્ત મુનિજ વિશુદ્ધ ભાષા દ્વારા ઉભોલેકની આરાધના કરવાની યોગ્યતાવાળ બને છે
શ્રી સુધર્મા સ્વામી જખ્ખ સ્વામીને કહે છે હે જબ્બ ! ભગવાન મહાવીરે જેવું કહ્યું છે તેવું જ મેં તમને કહ્યું છે (૫૭)
ઈતિ સાતમું મધ્યયન સમાપ્ત.
અધ્યયન આઠમું.
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨