Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्ययन ९ उ. २ गा. १७-१८ २१३ द्रव्यभावभेदेन निम्नां कुर्यात् , इदं यथायोगं सर्वत्र संयोज्यम् । तथा गतिगमनं नीचां, स्थानम् अवस्थानं नीचम् , आसनानि-फलकादीनि नीचानि, नीचम्-अवनतं शिरो यथा स्यात् तथा पादौ चरणौ वन्देत-प्रणमेत् अञ्जलि बद्धकरपुटं, नीचं=नम्रकायं यथा स्यात् तथा कुर्यात् , एवं कायविनयो विधेय इति भावः ॥ १७ ॥ कायविनयमुक्त्वा वाग्विनयमाह-'संघटइत्ता' इत्यादि । मूलम्-संघटइत्ता काएंणं, त्तही उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे, वइजे ने पुत्ति अ ॥१८॥ छाया-संघटयकायेन तथा उपधिनाऽपि । क्षमस्व अपराधं मे वदेत् न पुनरिति च ।। १८ ॥ टीका-कायेन-स्वशरीरेण तथा-एवम् , उपधिना=स्वकीयेन शाटकरजोहरणादिनाऽपि वा, संघटय आचार्यस्य रत्नाधिकस्य वा कायं शाटकादिकं द्रव्य भावसे नीची रख, द्रव्य से आचार्यादि की शय्या के प्रदेश से नीचे प्रदेश में रखे, भावसे अल्प मूल्य को शय्या रखे, तथा गति नीची रखे अर्थात् आचार्यादि के पीछे पीछे संघटा न करता हुआ चले स्थान (बैठने का तथा खडा रहने का स्थल) नीचा रखे, नम्रतापूर्वक चरणों में वन्दना करे और नम्रकाय होकर दोनों हाथ जोडें ।१७) __ काया का विनय बताकर अब वचन का विनय बताते है"संघइत्ता" इत्यादि । __यदि प्रमाद से भी आचार्य या रत्नाधिक (दीक्षामें बडे) का शरीर या उपधि अपने शरीर या रजोहरण आदि से संघहित (स्पृष्ट) તેમની–શયા-આસનની અપેક્ષા દ્રવ્ય-ભાવથી નીચે રાખવી. દ્રવ્યથી આચાર્ય આદિની શમ્યા નીચેના ભાગમાં રાખવી. ભાવથી અલ્પ મૂલ્યની શય્યા રાખે તથા ગતિ નીચે રાખે અર્થાત્ આચાર્યાદિકના પાછળ પાછળ સંઘઠ્ઠા-પર્શ ન કરીને ચાલે, બેસવા અને ઉભા રહેવાનું સ્થાન પણ નીચે રાખે, નમ્રતા પૂર્વક ચરણોમાં વંદના કરે અને નમ્રાય થઈને બે હાથ જોડે (૧૭) याना विनय मतावान वे क्यनन। विनय यता छ:-'संघट्टइत्ता' त्याहજે પ્રમાદથી આચાર્ય અથવા રત્નાધિક–દીક્ષામાં મોટા મુનિરાજના શરીર અથવા શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287