Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारमणमञ्जूषा टीका, अध्ययन ९ उ. २ गा. २४
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भ्रूचालन श्वासोच्छवासादिस्वाभाविकाङ्गवेष्टां विहायान्यसकलकार्ये गुरुनिदेशस्य प्रधानत्वमावेदितम् । 'सुअत्थधम्मा' इत्यनेन गीतार्था एव सकलविनयाचारसंपन्ना भवन्तीति सूचितम् । 'विणयंमिकोविआ' इत्येन विज्ञातविनयगुण महिनामेव जिनवचनमर्मज्ञताssवेदिता ' इति ब्रवीमि' पूर्ववत् ||२४||
॥ इति विनयसमाधिनामनत्रमाध्ययने द्वितीयोद्देशः समाप्तः ॥९-२|| ज्ञानावरण आदि आठों कर्मों का क्षय कर के सर्वोत्कृष्ट सिद्धिगति को प्राप्त होते हैं ।
"निदेसविन्ती" - पद से यह सूचित किया है कि माह चलाने, श्वासोच्छ्वास लेने आदि सिवाय अन्य सब कार्य गुरु की आज्ञापूर्वक ही करने चाहिए ।
"सुअत्थधम्मा" - पद से यह प्रगट होता है कि गीतार्थ साधु ही समस्त विनयाचार से सुसंपन्न होता है ।
"वियम्मि कोविआ " - पदसे यह द्योतित होता है कि जो विनयगुण की महिमा जान लेता है वही जिनप्रवचन का मर्म समझ सकता है ।
श्री सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं - हे जम्बू ! भगवान् महावीर स्वामीने जैसा कहा है वैसा ही मैं तुमसे कहता हूँ ॥ २४ ॥ । इति विनयसमाधि - नामक नवचां अध्ययन का दूसरा उद्देशक ॥ सम्पूर्ण ९-२॥
'निदेस वित्ती' हथी मे सूचित अयु छे है-नेत्रतुं स्पुर तथा श्वासाછ્વાસ લેવા તે સિવાય બીજા તમામ કામ ગુરુની આજ્ઞા પ્રમાણે જ કરવાં જોઇએ. 'अत्थधम्मा' पथी मे प्रगट थाय छे है-गीतार्थ साधु ४ समस्त વિયાચારથી સુસંપન્ન હાય છે.
'वियम्मि कोविआ' पहथी से गाय छे જાણી લે છે. તે જ જિન પ્રવચનના મમને સમજી શકે છે.
:- विनयगुणुन भडिभा
શ્રી સુધર્માં સ્વામી જમ્મૂ સ્વામીને કહે છે, હે જમ્મૂ ! ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ જે પ્રમાણે કહ્યું છે એ પ્રમાણે જ હું તમને કહું છું. (૨૪) આ વિનયસમાધિ નામક નવમા અધ્યયનના બીજો ઉદ્દેશક સમાપ્ત થયા. (૯-૨)
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨