Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 205
________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्ययन ९ गा. ११-१२ मूलम्-जहाहिअंग्गी जलेणं नमसे, नाणाहुइमंतपयाभिसित्तं । एवायरियं उचिट्टेइज्जा, अणंतनाणोवगओ वि संतो ॥११॥ छाया-यथाऽऽहिताग्निज्वलनं नमस्यति, नानाहुतिमन्त्रपदाभिषिक्तम् । एवमचार्यमुपतिष्ठेत, अनन्तज्ञानोपगतोऽपि सन् ॥११॥ टीका-'जहा' इत्यादि। यथा येन प्रकारेण आहिताग्निः अग्निहोत्री द्विजः नानाऽऽहुतिमन्त्रपदाभिषिक्तं नानाऽऽहुतयः आज्यादिप्रक्षेपाः मन्त्रपदानि='अग्नये स्वाहा' इत्यादीनि, तैरभिषिक्त-संस्कृतं ज्वलनं वह्नि नमस्यति-पूजयति। एवम् अनेन प्रकारेण शिष्यः अनन्तज्ञानोपगतः केवलज्ञानसंपन्नोऽपि सन् आचार्य-गुरुम् उपतिष्ठेत= विनयादिना सेवेत ॥११॥ गुरुः शिष्यं प्रति संवोध्याह-'जस्संतिए' इत्यादि । मूलम्--जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्संतिए वेणंइयं पउंजे । सकरीए सिरसा पंजलीओ, कोयग्गिरा भौमणसा ये निच्चं "।१२। छाया- यस्यान्ति के धर्मपदानि शिक्षेत, तस्यान्तिके वैनयिकं प्रयुञ्जीत । सत्कारयेत् शिरसा प्राञ्जालकः, कायगिरा भो मनसा च नित्यम् ॥१२॥ टीका-भोशिष्य ! (साधुः) यस्य आचार्यादेः अन्तिके समीपे, धर्म 'जहाहिअग्गी' इत्यादि । जैसे अग्निहोत्री ब्राह्मण, घृत आदि की अनेक आहुतियों से "अग्नये स्वाहा" इत्यादि मन्त्रो द्वारा संस्कार की हुई अग्नि को नमस्कार करता है उसी प्रकार शिष्य अनन्तज्ञान (केवलज्ञान) से युक्त होकर भी गुरु (आचार्य) का विनय करे ॥११॥ गुरु, शिष्य के प्रति कहते हैं-'जस्संतिए' इत्यादि। हे शिष्य ! विनीत शिष्य का यह कर्तव्य है कि जिन आचार्य 'जहाहिअग्गो' त्यादि म मनिडात्री ब्राह्मण वृत-धी माहिती अने माहुतियाथी 'अग्नये स्वाहा' या भन्दा २२४२ ४३सी मनिन नमा२ કરે છે, તે પ્રમાણે શિષ્ય અનન્તજ્ઞાન (કેવલજ્ઞાન) થી યુકત હોય તો પણ ગુરુ(આવાય) ना विनय ४२. (११) शुरु, शिष्य प्रति ४९ छ -'जस्संतिए' या... હે શિષ્ય ! વિનીત શિષ્યનું એ કર્તવ્ય છે કે જે આચાર્ય આદિની પાસે શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287